रायबरेली के डॉ इंद्रजीत वर्मा ने गलघोंटू बीमारी के लक्षण, बचाव और टीकाकरण पर जोर दिया
रायबरेली : खेती के साथ-साथ पशुपालन अब केवल परंपरा नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुका है और इस रीढ़ को बचाना अब हर पशुपालक की ज़िम्मेदारी है. इसके लिए जागरूकता और समय पर टीकाकरण सबसे सटीक हथियार साबित हो सकता है. बात बरसात की हो तो गलघोंटू बीमारी होने पर पशुओं में दिखते हैं ये संकेत, जानें क्या है ये रोग और इसका उपचार कैसे करें ?
पशु चिकित्सा के क्षेत्र में 25 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली जिले के राजकीय पशु चिकित्सालय शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी डॉ इंद्रजीत वर्मा ने बताया कि गलघोंटू बीमारी का लक्षण भैंस में सबसे ज्यादा दिखता है. हालांकि गाय में भी यह बीमारी देखने को मिलती है. बरसात के मौसम में पशुशाला के आसपास अगर बरसात का पानी जमा होता तो इससे इस रोग के होने की संभावना अधिक हो जाती है. बाढ़ के इलाकों में भी यह रोग देखा जाता है .
गलघोंटू बीमारी के लक्षणों में तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, नाक और मुंह से स्राव, और गले, गर्दन और छाती में सूजन शामिल हैं. यह रोग ‘पास्चुरेला मल्टोसीडा’ नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है. यह जीवाणु आमतौर पर श्वसन तंत्र में मौजूद होता है, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों में सक्रिय हो जाता है.
डॉ. इंद्रजीत वर्मा ने बताया कि गलघोंटू से बचाव का सबसे कारगर उपाय समय पर टीकाकरण है. पशुओं को हर साल टीका लगवाना चाहिए, खासकर बरसात शुरू होने से पहले. इसके अलावा, बीमार पशु को तुरंत अलग कर देना चाहिए ताकि संक्रमण अन्य पशुओं में न फैले. पशुशाला की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें और जलभराव से बचें.
सरकार द्वारा गला घोटू रोग से बचाव के लिए वृहद स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाया जाता है. जो भी किसान पशुपालन का काम करते हैं, वह अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क कर अपने पशुओं का आसानी से समय रहते टीकाकरण अवश्य करा लें. जिससे उन्हें किसी भी प्रकार के नुकसान का सामना न करना पड़े.