इस्लाम में शिर्क को सबसे बड़ा गुनाह माना गया है। कुरआन और हदीस साफ-साफ इसके प्रति आगाह करते हुए चेतावनी देते हैं कि अल्लाह के साथ किसी को साझीदार ठहराना या उसकी ताकत को किसी और में मान लेना इंसान के ईमान को बर्बाद कर देता है। अल्लाह के सिवा किसी और को काम बनाने-बिगाड़ने वाला, मौत-ज़िंदगी देने वाला या रोज़ी देने वाला मानना शिर्क है और इसकी माफी नहीं है। इस्लाम में शिर्क करने की सख्त मनाही है।
इस्लाम धर्म में शिर्क सबसे बड़ा गुनाह माना गया है। कुरआन और हदीस की रोशनी में शिर्क की कोई माफी नहीं है। अल्लाह ने इसे ज़ुल्मे अज़ीम यानी सबसे बड़ा ज़ुल्म कहा है। शिर्क का मतलब है ऐसा अमल या विश्वास रखना जिसमें अल्लाह के अलावा किसी और को ताक़तवर मान लिया जाए। चाहे वह इंसान हो, कोई कब्र, कोई जगह या कोई शख्सियत। अगर कोई यह सोच ले कि मेरा काम किसी शख्स या दरगाह से निकल जाएगा, या मेरी मुश्किल वहां से हल हो जाएगी तो यह शिर्क है।
इस्लाम की बुनियादी मान्यता यही है कि दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है वह सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की मर्जी और इख़्तियार से हो रहा है। इंसानों के काम बनाना या बिगाड़ना, मौत और ज़िंदगी देना, रोज़ी देना ये सब सिर्फ अल्लाह ही के बस में है। किसी गैर-इंसान, कब्र या जगह में इतनी ताक़त नहीं है कि वह इंसान के कामों को बना या बिगाड़ सके। इसलिए मुस्लिम समुदाय में जब कुछ लोग दरगाहों पर जाकर मन्नतें मांगते हैं और यह मानते हैं कि उनकी दुआएं वहीं से पूरी होंगी, तो यह भी शिर्क के दायरे में आता है।
इस्लाम को जानने के लिए किसी अच्छे मौलाना या मुफ़्ती से जानकरी लेना बेहतर है। क्योंकि अल्लाह के सिवा किसी और को काम बनाने-बिगाड़ने वाला, मौत-ज़िंदगी देने वाला या रोज़ी देने वाला मानना शिर्क है और इसकी माफी नहीं है।