Uttar Pradesh

मां दुर्गा की मूर्ति में तवायफ के कोठों की मिट्टी क्यों मिलाई जाती है? सच जान चकरा जाएगा अच्छे-अच्छों का दिमाग

नवरात्रि के साथ दुर्गा पूजा शुरू हो जाएगी. उत्तर भारत में इसे जोरदार ढंग से मनाते हैं. कारीगर मूर्ति निर्माण में महीनों पहले से जुट जाते हैं और कुछ भी भूल जाएं लेकिन तवायफ के कोठों की मिट्टी मिलाना नहीं भूलते. जौनपुर में नवरात्रि का पर्व आते ही पूरे देश में देवी दुर्गा की भव्य प्रतिमाओं की स्थापना का सिलसिला शुरू हो जाता है. इस दौरान जौनपुर सहित पूरे पूर्वांचल में मूर्तिकार महीनों पहले से प्रतिमा निर्माण में जुट जाते हैं. श्रद्धा और आस्था से जुड़ी इस प्रक्रिया में कई परंपराएं हैं, जो आपको हैरान कर देंगी. इनमें सबसे अनोखी परंपरा है— मूर्ति निर्माण में तवायफों के कोठों की मिट्टी मिलाना. यह सुनकर भले ही किसी को आश्चर्य हो, लेकिन इसके पीछे एक रोचक धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यता जुड़ी हुई है.

मूर्ति निर्माण की शुरुआत एक विशेष मिट्टी से होती है, जिसे “पुन्य माटी” कहा जाता है. पीढ़ियों पुरानी परंपरा के अनुसार इस मिट्टी में गंगा के किनारे की पवित्र मिट्टी के साथ उन जगहों की मिट्टी भी मिलाई जाती है, जहां तवायफों के कोठे हुआ करते थे. जौनपुर के कारीगर बताते हैं कि मान्यता है कि देवी मां की मूर्ति तभी पूर्ण होती है जब इसमें हर वर्ग और हर समाज का अंश शामिल हो. तवायफ के आंगन की मिट्टी का मिलना इस बात का प्रतीक है कि देवी मां केवल साधुओं, गृहस्थों या भक्तों की ही नहीं बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति की भी देवी हैं, जिसे समाज ने अक्सर हाशिये पर रखा है. मूर्तिकारों का कहना है कि इस मिट्टी को लाने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. इसका धार्मिक महत्त्व यह है कि मां दुर्गा की शक्ति में किसी भी वर्ग को बाहर नहीं रखा जा सकता. समाज जिन तवायफों को उपेक्षित मानता था, उनके आंगन की मिट्टी मूर्ति में मिलाकर यह संदेश दिया गया कि देवी की कृपा सब पर समान रूप से बरसती है.

जौनपुर में नवरात्रि के दौरान सैकड़ों जगहों पर दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना होती है. मंदिरों और पंडालों में सजने वाली प्रतिमाओं का आकर्षण देखने लायक होता है. मां दुर्गा की आंखों की रेखाएं खींचने से लेकर उनकी हथियारों की सजावट तक, सब कुछ बड़ी बारीकी से किया जाता है. मूर्ति निर्माण की इस लंबी प्रक्रिया में मिट्टी का चयन सबसे अहम चरण माना जाता है. यही कारण है कि ‘पुन्य माटी’ की परंपरा आज भी पूरी श्रद्धा से निभाई जाती है. जौनपुर शहर के वरिष्ठ मूर्तिकार बताते हैं, “हमारे गुरु कहा करते थे कि मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी केवल खेत या नदी की नहीं ली जाती, बल्कि उसमें वह आस्था भी मिलाई जाती है, जो समाज के हर तबके से आती है. तवायफ की कोठी की मिट्टी इसलिए जरूरी है क्योंकि वहां से भी मनुष्य की भावनाएं, इच्छाएं और जीवन के रंग जुड़े हैं. मां दुर्गा सबकी रक्षा करने वाली हैं.” जौनपुर की गलियों से लेकर बड़े-बड़े दुर्गा पंडालों तक, हर जगह इसकी छाप देखने को मिलती है.

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