Uttar Pradesh

क्या था क्रांतिकारी खान बहादुर खान? वह ब्रिटिश शासन से भारत और बरेली को आजाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

बरेली: 1857 की क्रांति के दौरान बरेली के महान स्वतंत्रता सेनानी खान बहादुर खान ने अंग्रेजी हुकूमत को 10 महीनों तक शहर से खदेड़ दिया था. उनके नेतृत्व में बरेली बना था स्वतंत्र भारत का प्रतीक. अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ते ही फांसी देने का फरमान जारी किया था. जानिए कैसे एक क्रांतिकारी ने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया.

बरेली की धरती पर एक ऐसा क्रांतिकारी पैदा हुआ, जिससे अंग्रेजी शासन तक कांपता था. वह नाम था खान बहादुर खान (Nawab Khan Bahadur Khan) का. 1857 की आजादी की पहली लड़ाई के दौरान खान बहादुर खान ने बरेली को 10 महीनों तक अंग्रेजी शासन से मुक्त कर दिया था. इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने पर सीधे फांसी देने का हुक्म जारी कर रखा था.

खान बहादुर खान, रोहिलखंड के दूसरे नवाब हाफिज रहमत खान के पोते थे. जब 1857 में मेरठ से शुरू हुई विद्रोह की चिंगारी पूरे उत्तर भारत में फैलने लगी, तो बरेली में इसकी बागडोर संभाली खान बहादुर खान ने. उन्होंने न सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका, बल्कि बरेली को अंग्रेजी शासन से मुक्त कर 10 महीने तक स्वराज की स्थापना की. इस दौरान उन्होंने प्रशासनिक फैसले लेने शुरू किए और ब्रिटिश सरकार के हर प्रयास को नाकाम किया.

अंग्रेजों को लगता था डर… इतिहासकार डॉ. राजेश शर्मा के अनुसार, खान बहादुर खान से अंग्रेजों में इतना भय था कि उन्हें जेल में रखने की बजाय पकड़ते ही सीधे फांसी देने का आदेश जारी किया गया था. अंग्रेज जानते थे कि यदि वह जीवित रहा, तो दोबारा ब्रिटिश राज के लिए खतरा बन सकता है. जब बरेली पर अंग्रेजों ने दोबारा कब्जा किया, तब खान बहादुर नेपाल में थे. लेकिन नेपाल की जनता ने उन्हें पकड़कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया. अंग्रेजों ने भी बिना देर किए उन्हें फांसी दे दी.

एक ही दिन 258 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई थी. इतिहासकार डॉ. शर्मा बताते हैं कि खान बहादुर खान को बरेली की पुरानी तहसील में फांसी दी गई थी. फांसी के बाद उनकी लाश को कोतवाली जेल परिसर में दफनाया गया. इतना ही नहीं, उनके साथियों 257 क्रांतिकारियों को भी, जो उनके साथ आंदोलन में शामिल थे, बरेली कलेक्ट्रेट परिसर में एक विशाल बरगद के पेड़ के नीचे फांसी दे दी गई थी.

खान बहादुर खान की विरासत आज भी जीवित है. उनके बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी. उनकी कहानी एक प्रेरणा के रूप में काम करती है, जो हमें आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा देती है.

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