गाजियाबाद: नई बस्ती निवासी वीरेंद्र कुमार उर्फ वीरू बाबा का जीवन त्याग, अनुशासन और संकल्प की मिसाल है। आज उनकी उम्र 80 वर्ष है, लेकिन उन्होंने पिछले 60 वर्षों से अन्न का एक भी दाना नहीं खाया है। उनका संपूर्ण जीवन सिर्फ उबली हुई सब्जियों पर आधारित है।
वीरू बाबा की कहानी शुरू होती है वर्ष 1965 से, जब देश में भीषण खाद्यान्न संकट था। उस वक्त के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से अपील की थी कि हर कोई सप्ताह में कम से कम एक समय का भोजन छोड़कर देश का साथ दे। वीरू बाबा, उस समय गाजियाबाद के शंभु दयाल इंटर कॉलेज में 12वीं के छात्र थे और उनकी उम्र सिर्फ 20 साल थी। शास्त्री जी की इस भावनात्मक अपील ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया और उन्होंने उसी दिन संकल्प ले लिया कि वे जीवन भर अन्न का त्याग करेंगे।
सिर्फ उबली सब्जियां, त्याग दिया था नमक भीसबसे पहले उन्होंने अन्न को छुआ तक नहीं और उनका भोजन सिर्फ उबली हुई सब्जियां हैं। उन्होंने बताया कि संकल्प लेते समय उन्होंने नमक का भी त्याग कर दिया था, लेकिन करीब 6 साल पहले स्वास्थ्य बिगड़ने पर डॉक्टरों की सलाह से नमक लेना दोबारा शुरू किया।
परिवार ने समझाया, लेकिन बाबा डटे रहेपरिवार के सदस्यों ने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की कि वह अन्न ग्रहण कर लें, लेकिन वीरू बाबा अपने निर्णय पर अडिग रहे। उनका कहना है, ‘एक बार जो निर्णय ले लिया, उसे जीवन भर निभाना चाहिए।’
समाज सेवा में आज भी सक्रियवीरू बाबा आज भी पूरी तरह से स्वस्थ हैं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते हैं। वे घंटाघर रामलीला ग्राउंड में नियमित रूप से सेवा कार्य करते हैं और लोगों को त्याग, अनुशासन और संकल्प की शिक्षा देते हैं। वीरू बाबा की यह जीवन यात्रा सिर्फ एक व्यक्तिगत संकल्प नहीं, बल्कि यह प्रमाण है कि अगर मन में दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो इंसान जीवनभर किसी भी नियम को निभा सकता है।