उत्तर प्रदेश में किसान खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय मिलती है. लेकिन ज्यादातर किसान पशुपालन सिर्फ दूध उत्पादन के लिए ही करते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि किसान दुधारू पशुओं से सिर्फ दूध ही नहीं, बल्कि गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद बनाकर अपनी कमाई को दोगुना कर सकते हैं.
गोबर को कूड़े में फेंकने के बजाय उसे खाद में बदलकर किसान सालाना लाखों रुपये का मुनाफा कमा सकते हैं. वर्मी कंपोस्ट मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है और फसलों के उत्पादन में भी इजाफा करती है. प्रगतिशील युवा किसान ज्ञानेश तिवारी ने बताया कि ज्यादातर किसान अब अपने पशुओं के गोबर को सिर्फ कूड़ा नहीं मान रहे हैं, किसान थोड़ी सी मेहनत कर इसे अतिरिक्त आय का एक जरिया बना सकते हैं.
वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल मिट्टी में करने से उपजाऊ क्षमता में इजाफा होता है. पैदा होने वाली उपज की गुणवत्ता भी बेहतर होगी. लेकिन अगर किसान वर्मी कंपोस्ट को बाजार में बेचते हैं तो उनको सालाना लाखों रुपए की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है. इतना ही नहीं किसान पांच पशुओं पर प्रति महीने होने वाले खर्च को वर्मी कंपोस्ट से आसानी से निकाल सकते हैं. किसानों को दूध उत्पादन से होने वाली पूरी आमदनी बच जाएगी.
कच्चे गोबर से तैयार होगा वर्मी कंपोस्ट अगर किसान के पास पांच पशु हैं तो रोजाना एक पशु से करीब 30 से 35 किलो गोबर इक्कठा होता है. 5 पशु से रोजाना लगभग 150 किलो गोबर हो जाएगा. एक महीने करीब 45 क्विंटल कच्चा गोबर इकट्ठा होगा. प्रॉसेस करने कच्चे गोबर से करीब 40% वर्मी कंपोस्ट तैयार होता है.
45 क्विंटल गोबर में से 40% के हिसाब से हर महीने लगभग 18 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट तैयार होगा. वर्मी कंपोस्ट की मांग बाजार में काफी ज्यादा रहती है. किसानों को सही भाव मिलता है, तो हर महीने 15 से 16 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हो जाएगी. वर्मीकंपोस्ट को तैयार करने के लिए किसानों को अलग से पैसा लगाने की आवश्यकता नहीं, किसान एक बार केंचुआ छोड़कर बार-बार कंपोस्ट तैयार कर सकते हैं. केंचुए की संख्या भी बढ़ेगी, जिसे बेचकर किसान अलग से कमाई कर सकते हैं.
वर्मी कंपोस्ट सिर्फ किसानों की आय बढ़ाने के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी कारगर साबित होगा. वर्मी कंपोस्ट खेती में रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता को कम करता है, जिससे मिट