Uttar Pradesh

कौन थे देवरिया के रामनगीना बाबू…जो नेताजी के आह्वान पर सिंगापुर तक पहुंच गए, फिर आजादी के बाद ही लौटे घर

देवरियाः देवरिया की मिट्टी ने ऐसे वीर सपूत जन्मे हैं, जिन्होंने अपने घर, परिवार और ऐशो-आराम को त्यागकर देश की आज़ादी की लड़ाई में सब कुछ न्यौछावर कर दिया. इनमें से एक थे खोरीबारी गांव के स्व. रामनगीना राय. नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर वह साथियों संग घर से निकले, सिंगापुर तक पहुंचे, आजाद हिंद फौज में शामिल हुए, दो साल तक जेल में रहे और आज़ादी के बाद ही गांव लौटे.

साल 1939 में देवरिया जनपद के भटनी ब्लॉक के खोरीबारी गांव के ज़मींदार परिवार में जन्मे रामनगीना राय के पास घर पर ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं थी. हाथी, घोड़े, जमीन-जायदाद सब मौजूद था. लेकिन नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर उन्होंने घर छोड़ दिया और साथियों संग कलकत्ता की ओर कूच कर गए.

रास्ते में खारा पानी पीना पड़ादेश प्रेमी इंडिया फाउंडेशन एवं स्व. रामनगीना राय के भतीजे यशवंत राय बताते हैं कि मेरे चाचा के साथ गांव के मधुबन पंडित, करामद मियां, सरल भगत, शिवनाथ हजाम, बच्चन राय, रामायण राय, रामायण शास्त्री सहित कई युवा थे। घरवालों को बिना बताए निकल पड़े. इन वीरों ने पहले कलकत्ता, फिर समुद्री जहाज़ से होते हुए सिंगापुर का सफर तय किया. रास्ते में खारा पानी पीना पड़ा, लेकिन हौसले बुलंद रहे.

ब्रिटिश हुकूमत ने इन्हें गिरफ्तार कियासिंगापुर में सभी ने आज़ाद हिंद फौज में भर्ती होकर नेताजी के ऐतिहासिक भाषण सुने. बारिश में घुटनों तक पानी भर जाने पर भी ये योद्धा डटे रहे. मगर नेताजी के विमान हादसे की खबर आने के बाद सब कुछ बदल गया. ब्रिटिश हुकूमत ने इन्हें गिरफ्तार कर सिंगापुर की जेल में डाल दिया, जहां दो-दो दिन में मुश्किल से पानी मिलता था.

नेहरू के शपथग्रहण में हिस्सा लियादो साल की कैद पूरी होने के बाद सभी रिहा हुए, लेकिन मधुबन तिवारी और करामद मियां का कोई पता नहीं चला. बाकी साथी दिल्ली लौटे और स्वतंत्रता संग्राम में जुटे रहे. 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ तो रामनगीना राय ने पंडित नेहरू के शपथग्रहण में हिस्सा लिया.

35 साल तक प्रधान रहेकरीब 10 साल बाद जब वह गांव लौटे तो बदहाली में थे, पहचानना भी मुश्किल हो गया था. गांववालों ने कपड़े दिए, दाढ़ी-मूंछ बनवाई और फिर वह समाज सेवा में जुट गए. उन्होंने शहीद मधुबन-करामद इंटर कॉलेज की स्थापना कर शहीद साथियों की याद को अमर कर दिया. जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने पेंशन गरीबों में बांटी, 35 साल तक प्रधान रहे और भक्ति में समय लगाया. उनकी कविताएं और किस्से आज भी लोगों को देशभक्ति का जज़्बा देते हैं.

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