Last Updated:July 26, 2025, 14:20 ISTKargil Vijay Diwas Special : 26 जुलाई यानी कारगिल विजय दिवस इसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है. देश के उन वीरों को सलाम करने का दिन, जिन्होंने 1999 में पाकिस्तान को उसकी नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया….और पढ़ेंहाइलाइट्स26 जुलाई यानी कारगिल विजय दिवस के नाम से भी जाना जाता है.गोलियों की बौछार के बीच भी मेजर प्राची गर्ग डटी रहींऔर घायल सैनिकों का इलाज किया.गाजियाबाद: 26 जुलाई यानी कारगिल विजय दिवस इसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है. देश के उन वीरों को सलाम करने का दिन, जिन्होंने 1999 में पाकिस्तान को उसकी नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया. इस जंग की एक खास बात यह भी है कि मैदान-ए-जंग में जहां दुश्मन की गोलियों की बौछार थी, वहीं देश की एक बेटी मेजर प्राची गर्ग न सिर्फ डटी रहीं, बल्कि घायल सैनिकों के लिए फ़रिश्ता बनकर सामने आईं.
1997 में कैप्टन बनकर सेना में भर्ती हुईं प्राची
प्राची गर्ग उस समय भारतीय सेना में मेडिकल अफसर थीं. जून 1997 में कैप्टन बनकर सेना में भर्ती हुईं. युद्ध के समय वे 8वीं माउंटेन आर्टिलरी ब्रिगेड के साथ द्रास सेक्टर में तैनात थीं और सबसे खास बात, उस ब्रिगेड में वे अकेली महिला अफसर थीं. मई 1999 की बात है. अचानक आदेश मिला कि द्रास सेक्टर के लिए रवाना होना है. उन्हें नहीं पता था कि अब जंग के मैदान में उतरना है, लेकिन प्राची डरी नहीं. उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी गई थी उसे निभाने के लिए वो पूरी ताक़त से तैयार थीं.
200 सैनिकों को किया इलाज
जंग के दौरान उन्होंने करीब 200 से ज्यादा घायल सैनिकों का इलाज किया. हर रोज़ कोई न कोई घायल आता, किसी का हाथ नहीं था, किसी की आंख चली गई थी, कोई सांसें गिन रहा होता लेकिन प्राची के चेहरे पर कभी शिकन नहीं दिखी. उनके लिए हर सैनिक की जान कीमती थी.
खुद की जान की भी नहीं की परवाह
13 जून की एक घटना आज भी उनके ज़हन में जिंदा है. प्राची गर्ग एक बिल्डिंग में थी तभी पाकिस्तान की तरफ से जबरदस्त गोलाबारी हुई और वो बिल्डिंग पूरी तरह ढह गई. उनके सीनियर अफसर चिल्लाए “भागो यहां से, जल्दी भागो.” पर वो वहां से नहीं भागीं. जान का डर था, लेकिन देश और अपने सैनिकों की सेवा उससे कहीं ऊपर थी. वे जानती थीं कि दुश्मन के हाथ लगने पर क्या अंजाम हो सकता है, फिर भी उनका हौसला नहीं टूटा. प्राची का कहना है “मैं अकेली महिला थी, लेकिन कभी नहीं लगा कि मैं कमजोर हूं. देश के लिए कुछ करना मेरा सपना था और कारगिल की जंग में मुझे वह मौका मिला. वो दिन मेरे लिए सिर्फ तारीख नहीं, बल्कि एक जीवन है.
सेना को ही अपना परिवार मानती हैं
उनका परिवार गाजियाबाद में ही रहता है. शादी उन्होंने नहीं की, लेकिन सेना को ही अपना परिवार मानती हैं. युद्ध के दौरान एक बार सिर्फ अपने भांजे के जन्मदिन पर फोन पर बात हो पाई थी, और वही पल उनकी आंखों में आज भी चमक भर देता है. मेजर प्राची गर्ग दिसंबर 2002 में सेना से रिटायर हो चुकी है और अब निजी हॉस्पिटल में कार्यरत है.Location :Ghaziabad,Ghaziabad,Uttar Pradeshhomeuttar-pradeshगोलियां से ढह गई बिल्डिंग, पर नहीं टूटी हिम्मत, सुनिए कारगिल युद्ध की कहानी