How Wife kidney Transplanted in 60 Years Old Husband even after Blood Group mismatch | अरे गजब.. ब्लड ग्रुप नहीं हुआ मैच, फिर भी वाइफ की किडनी को पति में कैसे किया गया ट्रांसप्लांट?

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How Wife kidney Transplanted in 60 Years Old Husband even after Blood Group mismatch | अरे गजब.. ब्लड ग्रुप नहीं हुआ मैच, फिर भी वाइफ की किडनी को पति में कैसे किया गया ट्रांसप्लांट?



Kidney Transplant: कई बार किडनी ट्रांसप्लांट करना कितना कॉम्पलिकेटेड हो सकता है, इसकी मिसाल दिल्ली के बेहद पास के शहर में देखने को मिली. ग्रेटर नोएडा के बादलपुर गांव के एक 60 साल के बुजुर्ग नोएडा के एक निजी अस्पताल में एबीओ-इनकंपेटिबल किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है, जहां डोनर (उनकी वाइफ) और रेसिपिएंट के ब्लड ग्रुप्स मैच नहीं कर रहे थे. 
डोनर को भी थी परेशानीडोनर की किडनी में 4.5 सेंटीमीटर का ट्यूमर था जिसे सर्जरी से पहले निकालना जरूरी था. बी+ ब्लड ग्रुप वाला रेसिपिएंट 2 साल से डायलिसिस पर था और उसे अर्जेंट ट्रांसप्लांट की जरूरत थी. उनकी 58 साल की वाइफ, जिसका ब्लड ग्रुप ए+ था, बेमेल होने के बावजूद इकलौती सुटेबल डोनर थीं. दूसरे ऑप्शंस की गैरमौजूदगी को देखते हुए ट्रांसप्लांट टीम ने सर्जरी को आगे बढ़ाया.
बेहद मुश्किल काममैक्स हॉस्पिटल, नोएडा में यूरोलॉजी, रोबोटिक्स और किडनी प्रत्यारोपण के सीनियर डायरेक्टर और किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी के हेड डॉ. अमित के देवरा (Dr. Amit K Devra) ने टीओआई को कहा, “ऐसे ट्यूमर को किडनी निकालने के बाद बेंच सर्जरी नामक तकनीक का इस्तेमाल करके हटाया जाता है. लेकिन इसे एबीओ-इनकंपेटिबल ट्रांसप्लांट के साथ जोड़ना हद से ज्यादा हाई लेवल की सटीकता और कोऑर्डिनेशन की डिमांड करता था.”
कंडीशन को समझेंएबीओ-इनकंपेटिबल ट्रांसप्लांट एक ऐसी कंडीशन है जहां डोनर और रेसिपिएंट के ब्लड टाइप्स अलग-अलग होते हैं, जिससे सर्जरी करना मुश्किल हो जाता है. हालांकि, हाल के एडवांसमेट के साथ, इनकंपेटिबल ब्लड ग्रुप्स वाले लोगों के बीच ट्रांसप्लांट रेसिपिएंट के खून में एंटीबॉडी को कम करके किया जा सकता है.
रिस्की ट्रांसप्लांटडॉ. देवरा ने आगे कहा कि एबीओ-इनकंपेटिबल ट्रांसप्लांट्स में रेसिपिएंट के खून एंटीबॉडी को कम करने के लिए प्लाज्माफेरेसिस की जरूरत होती है, जिससे रिजेक्शन का रिस्क कम हो जाता है लेकिन ब्लीडिंग का जोखिम भी बढ़ जाता है. सर्जरी से पहले रेसिपिएंट ने प्लाज्माफेरेसिस के दो दौर पूरे किए, और पूरे प्रोसीजर के दौरान उसकी कंडीशन को केयरफुली मॉनिटर किया गया.
मिली जबरदस्त कामयाबीडॉक्टर्स ने बताया कि 3.5 घंटे की सर्जरी में, डोनर की किडनी को कामयाबी के साथ निकाला गया, ट्यूमर को बेंच पर सावधानी के साथ हटाया गया, और ऑर्गन को रेसिपिएंट में सक्सेसफुली ट्रांसप्लांट किया गया – ये सब एक टाइटली कॉर्डिनेटेड सर्जिकल टाइमलाइ के भीतर हुआ.
दोनों लोग हुए हेल्दीडॉक्टर्स ने आगे कहा, “दोनों लोगों को सर्जरी की जरूरत थी. अगर डोनर के ट्यूमर को वक्त पर नहीं हटाया जाता, तो ये और बढ़ जाता, और पेशेंट को एक या दो साल के भीतर सर्जरी करवानी पड़ती.  हालांकि, ट्रांसप्लांट कामयाब रहा, और नई किडनी ऑपरेशन के तुरंत बाद काम करने लगी.” बता दें कि किडनी रेसिपिएंट को छठे दिन अस्पताल छुट्टी दे दी गई, और अब मरीज और डोनर दोनों की सेहत अच्छी है.



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