Health

Parkinsons Disease Patient New weekly injection may slash need for daily pills | पार्किंसन डिजीज के मरीजों के लिए गुड न्यूज, डेली दवा नहीं खानी पड़े, हफ्ते में एक बार इंजेक्शन लगाने से हो जाएगा काम



New Weekly Injection For Parkinson’s Disease: ऑस्ट्रेलिया में साइंटिस्ट्स की एक टीम ने, जिसमें भारतीय मूल के वैज्ञानिक भी शामिल हैं, एक नई वीकली इंजेक्शन वाली दवा विकसित की है जो पार्किंसन डिजीज से पीड़ित 8 मिलियन (80 लाख) से ज्यादा लोगों की जिंदगी को बदल सकती है, मुमकिन है कि इससे रोजाना कई सारी दवाओं को खाने की जरूरत खत्म हो जाए.
रोज दवा खाने से छुटकाराबार-बार दवा की खुराक लेना एक बोझ है, खासकर बुजुर्ग मरीजों या निगलने में प्रॉब्लम फेस करने वाले लोगों के लिए, जिससे दवा के लेवल में असंगति, ज्यादा साइड इफेक्ट्स और इफेक्टिवनेस में कमी आती है. इस परेशानी के समाधान के लिए, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया (UniSA) की टीम ने एक लंबे समय तक काम करने वाला इंजेक्शन तैयार किया है जो पूरे हफ्ते लेवोडोपा और कार्बीडोपा – पार्किंसन के लिए 2 बड़ी दवाएं – की स्टीडी डोज प्रोवाइड करता है.
7 दिनों तक काम करता है इंजेक्शनरिसर्चर्स ने ड्रग डिलीवरी एंड ट्रांसलेशनल रिसर्च (Drug Delivery and Translational Research) नामक जर्नलव में छपे पेपर में बताया कि बायोडिग्रेडेबल फॉर्मूलेशन को त्वचा के नीचे या मांसपेशियों के टिशू में इंजेक्ट किया जाता है, जहां ये 7 दिनों तक धीरे-धीरे दवा रिलीज करता है. 
इलाज हुआ आसानUniSA के सेंटर फॉर फार्मास्युटिकल इनोवेशन के लीड रिसर्चर प्रोफेसर संजय गर्ग (Professor Sanjay Garg) ने कहा कि न्यूली डेवलप्ड इंजेक्शन के रिजल्ट्स और पेशेंट के भरोसे में अहम सुधार कर सकता है. गर्ग ने कहा, “हमारा गोल एक ऐसा फॉर्मूलेशन बनाना था जो इलाज को आसान बनाए, मरीजों के पालन में सुधार करे और दवा के लगातार चिकित्सीय स्तर को बनाए रखे. ये वीकली इंजेक्शन पार्किंसन के ट्रीटमेंट के लिए एक गेम-चेंजर सबित हो सकता है. लेवोडोपा पार्किंसन के इलाज लिए गोल्ड स्टैंडर्ज है, लेकिन इसकी कम लाइफस्पान का मतलब है कि इसे दिन में कई बार लेना पड़ता है.”
कैसे काम करता है इंजेक्शन?इंजेक्टेबल जेल एक यूएस एफडीए-अप्रूव्ड बायोडिग्रेडेबल पॉलीमर, पीएलजीए, को यूड्रैजिट एल-100, एक पीएच-सेंसिटिव पॉलीमर के साथ जोड़ता है, ताकि कंट्रोल और सस्टेंड दवा रिलीज किया जा सके. टीम ने बताया कि लेवोडोपा और कार्बीडोपा दोनों का एक हफ्ते तक लगातार रिलीज होने से प्लाज्मा लेवल को बनाए रखने और दवा के कंसंट्रेशन में उतार-चढ़ाव से जुड़े रिस्क को कम करने में मदद मिल सकती है.
ट्राइड एंड टेस्टेड ट्रीटमेंटएक्सटेंसिव लैब टेस्ट ने सिस्टम की इफेक्टिवनेस और सेफ्टी कंफर्म की. लेवोडोपा की 90 फीसदी से ज्यादा खुराक और कार्बीडोपा की 81 फीसदी से ज्यादा खुराक 7 दिनों में रिलीज हुई. खास तौर से, इम्प्लांट एक हफ्ते के भीतर 80 फीसदी से ज्यादा डिग्रेड हो गया और सेल वायबिलिटी टेस्ट में कोई बड़ी टॉक्सिसिटी नहीं दिखाई.
मरीजों की परेशानी होगी कमइसके अलावा, फॉर्मूलेशन को 22-गेज की महीन सुई के जरिए आसानी से दिया जा सकता है, जिससे परेशानी कम होती है और सर्जिकल इम्प्लांटेशन की जरूरत खत्म हो जाती है. गर्ग ने कहा कि इस तकनीक को कैंसर, डायबिटीज, न्यूरोडीजेनेनेरेटिव डिसऑर्डर, पेन मैनेजमेंट और पुराने इंफेक्शन जैसे दूसरे क्रोनिक कंडीशन के लिए भी एडेप्ट किया जा सकता है, जिन्हें लॉन्ग टर्म तक दवा लेने की जरूरत होती है
(इनपुट-आईएएनएस)

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.



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