Success Story: न पैसे थे, न कोचिंग… फिर भी बन गए प्राचार्य! जानिए जौनपुर के डॉ. प्रहलाद राम की संघर्ष की कहानी

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 न पैसे थे, न कोचिंग... फिर भी बन गए प्राचार्य! जानिए संघर्ष की कहानी

जौनपुर: कहते हैं अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती. यही बात जौनपुर के बसेवा गांव में जन्मे डॉ. प्रहलाद राम ने साबित कर दिखाई है. कभी पैदल और साइकिल से 25 किलोमीटर दूर पढ़ने जाते थे, लेकिन आज राजकीय डिग्री कॉलेज में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं.

14 जुलाई 1976 को शिव मूर्ति राम के घर जन्मे डॉ. प्रहलाद राम की जिंदगी आसान नहीं रही. घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

प्रहलाद राम ने दी प्रतिक्रिया
लोकल18 से बातचीत में डॉ. प्रहलाद राम ने बताया कि उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय बसेवा से की. इसके बाद 1992 में श्री लालदेव नालदेव कुल इंटर कॉलेज बेलगांव से हाई स्कूल और 1994 में इंटर पास किया.

सपने बड़े थे, लेकिन जेब में पैसे नहीं थे. प्रहलाद राम बताते हैं कि स्नातक की पढ़ाई उन्होंने गणेशदत्त स्नातक विद्यालय डोभी से 1997 में पूरी की. परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि किसी शहर जाकर कोचिंग कर पाते है. इसलिए उन्होंने घर पर ही तैयारी शुरू की. पैसों की तंगी के कारण कभी साइकिल से तो कभी पैदल चलकर स्कूल और कॉलेज जाया करते थे.

2004 में शुरू हुई नौकरी, लेकिन तैयारी नहीं छोड़ी
आखिर मेहनत रंग लाई और 2004 में उन्हें प्राथमिक विद्यालय में विशिष्ट बीटीसी पद पर नियुक्ति मिल गई. लेकिन उनका सपना यहीं खत्म नहीं हुआ. उन्होंने तैयारी जारी रखी और 24 मार्च 2005 को उनका चयन राजकीय महिला महाविद्यालय पट्टी प्रतापपुर में हुआ. इसके बाद राजकीय महाविद्यालय महोबा और फिर 25 जून 2018 से मोहम्मदाबाद गोहाना में तैनाती मिली.

आज डॉ. प्रहलाद राम राजकीय डिग्री कॉलेज में प्राचार्य के रूप में कार्य कर रहे हैं और उनका संघर्ष, मेहनत और धैर्य हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया है.

परिवार ने दिया पूरा साथ
डॉ. प्रहलाद बताते हैं कि उनकी पढ़ाई में परिवार का बहुत बड़ा योगदान रहा. जब वह घर पर पढ़ाई करते थे, तब कोई उन्हें डिस्टर्ब नहीं करता था, बल्कि सभी सहयोग करते थे ताकि वे पढ़ाई पर ध्यान दे सकें. उन्होंने कहा कि अगर परिवार का ऐसा सहयोग न होता, तो शायद वह यहां तक नहीं पहुंच पाते.

वो कहते हैं कि पैसे नहीं थे तो क्या हुआ, हौसला और मेहनत थी. उनका मानना है कि अगर आप सच्चे मन से किसी लक्ष्य को पाने की ठान लें, तो मुश्किलें रास्ता नहीं रोक सकतीं. उनकी ये कहानी हर उस छात्र के लिए उम्मीद की किरण है जो संसाधनों की कमी से जूझ रहा है.

डॉ. प्रहलाद राम आज भी छात्रों को यही सलाह देते हैं, “कभी हालातों से हार मत मानो, क्योंकि कठिनाई ही इंसान को मजबूत बनाती है.”

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