Now intestinal gut bacteria will not be able to hid new AI technology will find them instantly | अब छुप नहीं पाएंगे आंतों के बैक्टीरिया, झट से ढूंढ़ निकालेगी ये नई AI तकनीक

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Now intestinal gut bacteria will not be able to hid new AI technology will find them instantly | अब छुप नहीं पाएंगे आंतों के बैक्टीरिया, झट से ढूंढ़ निकालेगी ये नई AI तकनीक



AI Technology: यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो (University of Tokyo) के वैज्ञानिकों ने पहली बार एक खास तरह की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस AI तकनीक का इस्तेमाल किया है, जिसे बायेसियन न्यूरल नेटवर्क कहा जाता है. इसका उपयोग उन्होंने आंतों (गट) में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से जुड़ी जानकारी का विश्लेषण करने में किया. इस तकनीक से वे उन संबंधों को समझ पाए, जिन्हें पुराने तरीकों से ठीक से नहीं पहचाना जा सकता था.
आपकी आंतों में करीब 100 ट्रिलियन बैक्टीरिया होते हैं, जबकि पूरे मानव शरीर में लगभग 30 से 40 ट्रिलियन कोशिकाएं होती हैं. आंतों के बैक्टीरिया कई स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं में एक महत्वपूर्ण कारक माने जाते हैं और हमारी सेहत से जुड़ी कई समस्याओं में अहम भूमिका निभाते हैं.
बायोलॉजिकल साइंसेज विभाग में त्सुनोदा लैब के प्रोजेक्ट रिसर्चर तुंग डांग ने बायोइनफॉरमैटिक्स में ब्रीफिंग में छपे एक पेपर में कहा कि अभी हमें यह ठीक से नहीं पता कि कौन-सा बैक्टीरिया कौन-से मेटाबोलाइट्स बनाता है और ये कनेक्शन अलग अलग बीमारियों में कैसे बदलते हैं. अगर हम इन बैक्टीरिया और केमिकल्स के बीच का सही कनेक्शन जान लें, तो भविष्य में हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग इलाज तैयार किया जा सकता है. मसलन, लाभकारी मानव मेटाबोलाइट्स का उत्पादन करने के लिए एक स्पेशल बैक्टीरिया को तैयार किया जा सकता है, या फिर खास बीमारियों का इलाज करने के लिए भी इन मेटाबोलाइट्स को संशोधित किया जा सकता है.
उन्होंने बताया कि उनका बनाया सिस्टम अपने आप यह जान लेता है कि इतने सारे बैक्टीरिया में से कौन-से मेन हैं जो मेटाबोलाइट्स को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं. साथ ही, सिस्टम यह भी मानता है कि उसमें कुछ अनिश्चितता रह सकती है, जिससे जबरदस्ती गलत नतीजे न दिए जाएं.
डांग ने बताया कि जब इस सिस्टम को नींद की समस्या, मोटापा और कैंसर से जुड़ी जानकारियों पर चेक किया गया तो इसने पुराने तरीकों से कहीं बेहतर रिजल्ट मिला. ऐसे बैक्टीरिया पहचाने जो पहले से जाने-पहचाने जैविक प्रक्रियाओं से मेल खाते हैं. इससे भरोसा बढ़ता है कि यह सिस्टम सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं दिखाता, बल्कि असली जैविक संबंध को भी पकड़ता है.हालांकि इतना बड़ा डाटा देखने में इस तकनीक में बहुत कंप्यूटर पावर लगती है, लेकिन समय के साथ यह समस्या भी हल हो जाएगी. रिसर्चर डांग ने कहा कि वे आगे और भी गहराई से उन केमिकल्स का अध्ययन करना चाहते हैं, जिनमें यह पता लगाना होगा कि वे बैक्टीरिया से आए हैं, हमारे शरीर से या फिर हमारे खाने से.
(इनपुट-आईएएनएस)
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. इसे अपनाने से पहले चिकित्सीय सलाह जरूर लें. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.



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