Ground Report: बांसुरी नगरी की सांसें रुकीं! 2000 KM दूर से आता है कच्चा माल, पीलीभीत के कारीगर बेबस

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बांस 2000 KM दूर, सपना टूटता हर रोज़! संकट में बांसुरी नगरी के कारीगर

Last Updated:July 03, 2025, 22:46 ISTपीलीभीत की पहचान रही बांसुरी कारीगरी आज बांस की कमी से जूझ रही है. असम से मंगाए जाने वाले ‘निब्बा बांस’ की महंगी लागत कारीगरों के लिए चुनौती बन गई है. सरकारी प्रयास ठंडे बस्ते में हैं और बांसुरी उद्योग सिमटकर क…और पढ़ेंहाइलाइट्सपीलीभीत को बांसुरी नगरी के नाम से जाना जाता है.बांसुरी निर्माण के लिए असम के सिलचर से निब्बा बांस लाया जाता है.2000 किमी दूर से बांस मंगवाना महंगा पड़ता है.पीलीभीत: उत्तर प्रदेश का पीलीभीत जिला यूं तो टाइगर रिजर्व के लिए मशहूर है, लेकिन यहां की बांसुरी की भी पहचान है. यहां की गलियों में बहती बांसुरी की मधुर धुन किसी ज़माने में देश के हर कोने में गूंजती थी. बांसुरी की यही विरासत आज संकट में है. वजह है बांस की कमी.

आपको जानकर हैरानी होगी कि इतने सालों से “बांसुरी नगरी” कहलाने वाला यह जिला खुद बांस की किल्लत से जूझ रहा है. यहां जो बांसुरी बनाई जाती है, उसमें ‘निब्बा बांस’ का इस्तेमाल होता है और ये बांस असम के सिलचर में मिलता है . यानी 2,000 किलोमीटर दूर से बांस मंगाया जाता है. ऐसे में इसकी लागत काफी बढ़ जाती है.

कुछ सैकड़ों परिवार बना रहे हैं बांसुरी
एक वक्त था जब पीलीभीत के हज़ारों परिवार इस कारीगरी से जुड़े थे. देश की 80% बांसुरी यहीं बनती थी और फिर देश-दुनिया तक जाती थी. समय बीतता गया, बांस महंगा होता गया, मेहनताना घटता गया और हालात ऐसे बने कि अब सिर्फ 200-250 परिवार ही इस काम में बचे हैं. बाकी कारीगर रोज़गार की तलाश में कहीं और निकल गए.

सरकारी कोशिशें रह गईं अधूरीसरकार ने इस समस्या को पहचानते हुए बांसुरी को ODOP (एक जिला एक उत्पाद) योजना में शामिल जरूर किया था. पूर्व जिलाधिकारी पुलकित खरे के समय प्रयागराज से विशेषज्ञों की टीम भी आई थी. नर्सरी बनाने की कोशिश हुई, बांस की खेती की संभावना भी दिखी. लेकिन अफ़सोस, ये सब शुरुआत तक ही सीमित रह गया.

बांसुरी कारीगरों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि जब तक लोकल बांस नहीं मिलेगा, तब तक लागत बढ़ती रहेगी और ये परंपरा दम तोड़ती रहेगी. सिलचर से आने वाले बांस पर ट्रांसपोर्ट, टैक्स और मिडिलमैन का खर्चा अलग होता है. ये सब मिलकर कारीगर की जेब खाली कर देता है.

कब तक मिलेगा हल?आज भी बांसुरी कारीगर उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार उनकी सुनेगी, कोई ठोस पहल होगी, लोकल बांस मिलेगा, और फिर से पीलीभीत में बांसुरी की धुनें वैसे ही गूंजेंगी जैसे पहले गूंजती थीं. लेकिन अफ़सोस की बात है कि फिलहाल उनके इस सवाल का कोई जवाब ज़िम्मेदारों के पास नहीं है.Location :Pilibhit,Uttar Pradeshhomeuttar-pradeshबांस 2000 KM दूर, सपना टूटता हर रोज़! संकट में बांसुरी नगरी के कारीगर

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