Last Updated:July 01, 2025, 14:53 ISTAligarh News: मोहर्रम, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है और इस महीने की 10वीं तारीख को यौमे आशूरा कहा जाता है. इस्लाम के इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक कर्बला की जंग हुई थी.हाइलाइट्समोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता हैमुस्लिम समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र और भावनात्मक महीनों में से एक माना जाता हैयह महीना विशेष रूप से शिया मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है.अलीगढ़: मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है और इसे मुस्लिम समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र और भावनात्मक महीनों में से एक माना जाता है. यह महीना विशेष रूप से शिया मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस महीने की 10वीं तारीख को यौमे आशूरा कहा जाता है. इस्लाम के इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक कर्बला की जंग हुई थी.क्या है मुहर्रम का उद्देश्य
जानकारी देते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बने इमामबाड़ा के इंचार्ज गुलाम रज़ा बताते हैं कि मोहर्रम मनाने का मूल उद्देश्य केवल नया साल शुरू करना नहीं है, बल्कि यह समय होता है शहादत, बलिदान और न्याय के लिए खड़े होने की याद में शोक मनाने का. पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथियों को कर्बला के मैदान में सन् 680 ईस्वी (हिजरी 61) में यज़ीद की जुल्मी हुकूमत के खिलाफ खड़े होने की वजह से शहीद कर दिया गया था. इमाम हुसैन ने अन्याय, तानाशाही और अधर्म के खिलाफ आवाज़ उठाई और अपने परिवार और साथियों के साथ भूखे-प्यासे रहकर भी धर्म की रक्षा करते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी.
क्या है आशूरा का दिन
उन्होंने कहा कि आशूरा का दिन, जो मोहर्रम की 10वीं तारीख को पड़ता है, इसी महान बलिदान की याद में मनाया जाता है. शिया मुस्लिम इस दिन मातम करते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मजलिसों में इमाम हुसैन और उनके साथियों की कुर्बानी का ज़िक्र सुनते हैं. सुन्नी मुस्लिम समुदाय में भी इस दिन का महत्व है, लेकिन वह इसे एक उपवास (रोज़ा) रखकर मनाते हैं क्योंकि हदीसों के अनुसार, यह दिन कई पुराने पैग़म्बरों जैसे कि मूसा के लिए भी महत्वपूर्ण रहा है. माना जाता है कि इसी दिन अल्लाह ने हज़रत मूसा और उनकी क़ौम को फिरऔन से निजात दी थी.
मोहर्रम महीना ग़म का महीना है
गुलाम रज़ा ने बताया कि इस प्रकार मोहर्रम और खासतौर पर आशूरा का दिन हमें सच्चाई, ईमानदारी, और इंसाफ की राह पर चलने की प्रेरणा देता है. यह महीना ग़म का महीना है जिसमें मुसलमान केवल शहीदों को याद ही नहीं करते, बल्कि अपने जीवन में उनके बताए रास्ते पर चलने की कोशिश भी करते हैं. इमाम हुसैन की कुर्बानी पूरी इंसानियत के लिए एक अमर संदेश बन चुकी है. ज़ुल्म के आगे झुकना नहीं, चाहे इसकी कीमत जान ही क्यों न हो.Location :Aligarh,Aligarh,Uttar Pradeshhomeuttar-pradeshमोहर्रम में क्या महत्व रखता है आशूरा, जानिए बलिदान, इंसाफ और सब्र की अमर गाथा