Sickle Cell Disease: आईसीएमआर के तहत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोहेमेटोलॉजी, मुंबई के साल 2019 से 2024 के बीच किए गए न्यूबॉर्न टेस्ट प्रोग्राम से सिकल सेल डिजीज से होने वाली मृत्यु दर में कमी देखने को मिली. इस प्रोग्राम की वजह से मृत्यु दर 20-30 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी से नीचे दर्ज की गई.
न्यूबॉर्न टेस्ट के फायदेनागपुर में आईसीएमआर-सीआरएमसीएच की डायरेक्टर डॉ. मनीषा मडकैकर ने न्यूजी एजेंसी आईएएनएस को बताया कि नवजात शिशुओं में जल्दी डायग्नोस और ट्रीटमेंट से इस सीरियस जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर के असर को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
सिकल सेल डिजीज क्या है?सिकल सेल डिजीज एक पुराना, सिंगल-जीन डिसऑर्डर है. ये एक ऐसी बीमारी है जो खून से जुड़ी है और पूरी जिंदगी मरीज को अफेक्ट करती है. इसमें शरीर में खून की कमी हो जाती है, दर्द के दौरे पड़ते हैं, अंगों को नुकसान होता है और इससे लाइफ एक्सपेक्टेंसी भी कम हो जाता है.
इस बीमारियों का इलाज मुमकिनडॉ. मडकैकर ने बताया, “न्यूबॉर्न टेस्ट प्रोग्राम इसलिए जरूरी है, क्योंकि जल्दी डायग्नोस होने पर पेनिसिलिन, विटामिन, वैक्सीनेशन और हाइड्रॉक्सीयूरिया थेरेपी जैसे उपचार शुरू किए जा सकते हैं. इससे मृत्यु दर में भारी कमी आई है.”
कितने टेस्ट हुए?इस स्टडी में 63,536 नवजात शिशुओं की जांच की गई, जिनमें 57 फीसदी आदिवासी और 43 फीसदी गैर-आदिवासी परिवारों से थे. स्टडी में 546 सिकल सेल डिजीज के मामले पाए गए. ये अध्ययन सात उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों – उदयपुर (राजस्थान), भरूच (गुजरात), पालघर, चंद्रपुर, गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), मंडला, डिंडोरी (मध्य प्रदेश), नबरंगपुर, कंधमाल (ओडिशा) और नीलगिरी (तमिलनाडु) में किया गया. गुजरात में सबसे ज्यादा 134 मामले, महाराष्ट्र में 127, ओडिशा में 126, मध्य प्रदेश में 97, राजस्थान में 41 और तमिलनाडु में 21 मामले सामने आए. स्टडी में 22 बच्चों (4.15 प्रतिशत) की मृत्यु सिकल सेल रोग से हुई.
प्रिवेंशन करना आसानडॉ. मडकैकर ने बताया, “जल्दी पकड़ में आने से न सिर्फ बच्चे का इलाज मुमकिन है, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों की जांच और परामर्श से बीमारी को और फैलने से रोका जा सकता है.” उन्होंने सुझाव दिया कि सिकल सेल डिजीज के प्रचलित क्षेत्रों में सभी नवजात शिशुओं की जांच अनिवार्य होनी चाहिए. ये कार्यक्रम न सिर्फ जान बचाता है, बल्कि जागरूकता और रोकथाम में भी मदद करता है.
(इनपुट-आईएएनएस)
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