Men do not feel pain Such motivation can spoil mental health of child know its disadvantages from a psychologist | मर्द को दर्द नहीं होता… ऐसा मोटिवेशन बिगाड़ सकता है बच्चे का मेंटल हेल्थ, जानें साइकोलॉजिस्ट से इसके नुकसान

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Men do not feel pain Such motivation can spoil mental health of child know its disadvantages from a psychologist | मर्द को दर्द नहीं होता... ऐसा मोटिवेशन बिगाड़ सकता है बच्चे का मेंटल हेल्थ, जानें साइकोलॉजिस्ट से इसके नुकसान



(रिपोर्टर- पूजा मेहरोत्रा)
आजकल छोटी छोटी -छोटी बातों पर बच्चे खासकर टीनएजर्स स्ट्रेस में आ रहे हैं. एक अलग तरह का फोमो बच्चों में दिखाई दे रहा है. बच्चे दबाव में हैं. माता -पिता अपने अधूरे सपने या अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए ऐसे सपने देख ले रहे हैं और उन सपनों को पूरा करने में बच्चों को ऐसे झोंक दे रहे हैं, जैसे- बच्चा कोई मशीन हो. वो क्रिएटिव कुछ सोच ही नहीं पा रहा है. 
जिंदगी में फेल होने का डर बच्चों में 14-15 साल में ही घर कर ले रहा है.  उसका नतीजा है कि ये बच्चे बड़े-बड़े कदम उठा ले रहे हैं. और बाकी कसर मोबाइल फोन और सोशल मीडिया ने पूरी कर दी है जो उन्हें  ‘डंब’ बनने को मजबूर कर रहा है.
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क्यों स्ट्रेस में है बच्चे
बच्चों की इन्हीं साइकोलॉजी को समझने के लिए हमने बात की मैक्स हेल्थकेयर में कंसलटेंट और स्कूल एंड चाइल्ड साइकेट्रिस्ट गीतिका कपूर से. बच्चों के स्ट्रेस पर वह कहती हैं कि ‘जब वास्तविक जिंदगी, हमारी फेंटसी से मैच नहीं करती है तो वो हमे तनाव देती है.’ ये बच्चों में खूब हो रहा है.
बच्चे हो रहे हैं बर्न आउट- गुमसुम
बच्चा और आज का बचपन अपनी आस-पास की चीजों में इतना बर्न आउट हो चुका है कि वो गुमसुम रहने लग जाता है. या फिर वो इतना चिड़चिड़ा हो जाता है कि हर छोटी छोटी बात पर रिएक्ट कर जाता है. ऐसे में पैरेंट्स और स्कूल टीचर्स को चाहिए कि बच्चों को समझें और उन्हें उनका समय दें. 
हर बच्चे का विकास अलग-अलग होता है
चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट बताती हैं, ‘ऐसा समाज या हमारे सिस्टम ने मान लिया गया है कि इस उम्र तक बच्चा ये कर ही लेगा. जबकि हर बच्चे का विकास एक जैसा नहीं होता है.’ पैरेंट्स बच्चे के लिए बहुत छोटी सी आयु में ही उनका फ्यूचर प्लान करने लग जाते हैं. यहीं नहीं हॉबी क्लासेज, टैलेंट क्लासेज, कोचिंग, ये सभी कुछ स्कूल के बाद हो रहा है. बच्चों के पास फ्री टाइम नहीं है. बच्चों के लिए क्रिएटिविटी दिखाने का समय नहीं है. बचपन पूरी तरह से बर्न आउट हो गया है.’ 
सोशल मीडिया का रोल
साइकोलॉजिस्ट गीतिका आगे बताती हैं कि हमारे आस पास इतनी सूचना भरी पड़ी है कि हम न चाहते हुए उसे अपनी जिंदगी में उतारने को मजबूर हो रहे हैं. बच्चों के हाथों में सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन पहुंच गया है, ऐसे में बच्चे इसे ही अपना दोस्त मान लेते हैं और ये एडिक्शन बन जाता है. जितना ज्यादा एक्सपोजर होता है उतना ही ज्यादा अनजाना और अनचाहा डर आपके दिमाग में घर करने लग जाता है. 
लड़कों को दर्द होता है और डर भी लगता है
लड़कों को बचपन से ही इस समाज में ऐसे बड़ा किया जाता है कि वो किसी भी दुख और दर्द से निपटने के लिए तैयार है. उन्हें न तो दुख होता है न दर्द होता है..रोना तो दूर की बात है. ऐसे में लड़के अपनी जिंदगी का सामना नहीं कर रहे बल्कि अपनी भावनाओं को दबा ले जाते हैं तो घातक है. यही वजह है कि बच्चे खासकर लड़के इतने रूड हो जाते हैं कि वो उस इमोशन को समझ ही नहीं पाते हैं.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. इसे अपनाने से पहले चिकित्सीय सलाह जरूर लें. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.



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