ISRO Story: भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने युवाओं से हमेशा बड़े सपने देखने की प्रेरणा दी थी. शाहपुर (ठाणे) के शिरगांव गांव की सुजाता रामचंद्र मडके (Sujata Ramchandra Madke) ने इसी विचार को अपनाकर कड़ी मेहनत से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में साइंटिस्ट का पद हासिल करने में कामयाब रही हैं और अपने गांव का नाम रोशन किया है.गांव के छोटे स्कूल से बड़ी उड़ान की शुरुआत
सुजाता का जन्म ठाणे जिले के शाहपुर तालुका के शिरगांव गांव में हुआ, जो शाहपुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है. उन्होंने सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव के जिला परिषद स्कूल से की. वही स्कूल जहां उनके पिता रामचंद्र और दादा जीवा मडके ने भी शिक्षा पाई थी. यह स्कूल वर्ष 1936 में स्थापित हुआ था और कई पीढ़ियों की शिक्षा का आधार बना है.
सरकारी स्कूल से पढ़ाई, IIT और बिजली विभाग में किया काम
प्राथमिक शिक्षा के बाद सुजाता ने शाहपुर के जी. वी. खाड़े स्कूल से पढ़ाई की और SSC परीक्षा में 94.91% तथा HSC में 77.50% अंक प्राप्त किए. इसके बाद उन्होंने डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, लोनेरे से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया. उन्होंने IIT खड़गपुर में वर्चुअल लैब प्रोजेक्ट के तहत रिसर्च इंजीनियर के रूप में कार्य किया और बाद में MAHAGENCO में असिस्टेंट इंजीनियर के पद के लिए चयनित हुईं
साधारण परिवार से असाधारण मुकाम तक
सुजाता के पिता रामचंद्र मडके केवल 10वीं कक्षा तक पढ़ सके थे. उन्होंने ठाणे जिला परिषद में क्लर्क के रूप में काम करते हुए खेती भी की, जिससे उन्होंने अपने चार बच्चों को पढ़ाया लिखाया. सुजाता की मां सविता एक गृहिणी हैं. सुजाता की बहनें और भाई निजी कंपनियों में कार्यरत हैं. परिवार की सीमित आर्थिक स्थिति के बावजूद सुजाता ने कभी हार नहीं मानी और लगातार मेहनत करती रहीं.
सरकारी नौकरी छोड़ी, सपना नहीं
ठाणे RTO में मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर के रूप में दो वर्षों तक कार्य करने के बाद सुजाता ने ISRO में साइंटिस्ट बनने के अपने लक्ष्य को प्राथमिकता दी. पढ़ाई के लिए वह प्रतिदिन 8 से 12 घंटे तक समय देती थीं. उनकी बहन चेतना बताती हैं कि बचपन से ही सुजाता पढ़ाई में तेज थीं और मेहनत के बल पर उन्होंने यह मुकाम हासिल किया.
नए अध्याय की शुरुआत
अपने लक्ष्य को साधने के बाद सुजाता ने 27 मई 2024 को बेंगलुरु में ISRO साइंटिस्ट के रूप में कार्यभार संभाला. उनके पिता ने गर्व से कहा कि सुजाता ने पढ़ाई के लिए लगातार प्रयास किए और आज वह देश की सेवा करने जा रही हैं. मां सविता ने बेटी की आर्ट्स और साइंस में रुचि को बचपन से ही पहचाना और अब उसे पूरा होता देख गर्व महसूस किया.
एक प्रेरणा, जो भविष्य की राह दिखाती है
सुजाता मडके की कहानी यह दर्शाती है कि सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद अगर आत्मविश्वास और समर्पण हो, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है. उनका सफर न केवल एक व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि हजारों ग्रामीण बेटियों के लिए उम्मीद की नई किरण है.
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