Health

This dangerous fungi can eat you from inside scientists warn it spreading due to climate change | जिंदा लाश बना सकता है ये फंगस, क्लाइमेट चेंज से फैल रहा बड़ा खतरा; वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी!



दुनिया भर में लाखों लोगों की जान लेने वाला एक खतरनाक फंगस अब और भी ज्यादा खतरनाक होता जा रहा है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) की वजह से यह फंगस नई-नई जगहों पर तेजी से फैल रहा है और अगर अभी भी सचेत नहीं हुए, तो इंसानियत को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
मशरूम से लेकर काले फफूंद तक, फंगस हर जगह पाया जाता है. मिट्टी, पानी, कम्पोस्ट और यहां तक कि हमारी सांस में भी मौजूद यह माइक्रोऑर्गेनिज्म, जहां एक ओर पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं दूसरी ओर इंसानी सेहत के लिए जानलेवा भी साबित हो सकते हैं. हर साल अनुमानित 25 लाख लोगों की मौत फंगल इन्फेक्शन्स से होती है. लेकिन इसके बावजूद यह विषय बहुत कम शोध का हिस्सा बनता है.
कैसे हुआ अध्ययनब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने हाल ही में कम्प्यूटर सिमुलेशन और भविष्यवाणियों की मदद से यह अध्ययन किया कि कैसे एस्परजिलस नामक फंगस जलवायु परिवर्तन के साथ नए क्षेत्रों में फैल सकता है. यह फंगस एस्परगिलोसिस नाम की जानलेवा बीमारी का कारण बनता है, जो खासतौर पर फेफड़ों पर असर डालती है.
खतरा क्यों बढ़ रहा है?अध्ययन में पाया गया कि जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ेगा, एस्परजिलस की कई प्रजातियां नई जगहों पर फैलेंगी. खासकर उत्तरी अमेरिका, यूरोप, चीन और रूस के नए इलाके इसके चपेट में आ सकते हैं. वैज्ञानिक नॉर्मन वान रिजन ने कहा कि फंगस पर वायरस या बैक्टीरिया की तरह ज्यादा रिसर्च नहीं होती, लेकिन हमारी स्टडी बताती है कि भविष्य में ये पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकते हैं.
सच्ची चेतावनीयह चेतावनी किसी साइंस फिक्शन का हिस्सा नहीं, बल्कि सच्चाई है. पॉपुलर टीवी सीरीज ‘दा लास्ट ऑफ अस’ ने एक ऐसे काल्पनिक वायरस को दिखाया था जो इंसानों को ‘जिंदा लाश’ बना देता है. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि असल जीवन में एस्परजिलस जैसे फंगस लाखों लोगों की जान ले रहे हैं और यह खतरा अब और तेजी से फैल रहा है.
कैसे हमला करता है फंगस?एस्परजिलस हर दिन हवा में फैलने वाले माइक्रोस्कोपिक स्पोर्स (बीजाणुओं) के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश करता है. ज्यादातर लोग इससे सुरक्षित रहते हैं, क्योंकि उनकी इम्यूनिटी इन स्पोर्स को खत्म कर देती है. लेकिन जिन लोगों को अस्थमा, सीओपीडी, कैंसर, किडनी ट्रांसप्लांट या कोविड जैसी बीमारियां हुई हों, उनके लिए यह फंगस जानलेवा साबित हो सकता है. अगर शरीर इन स्पोर्स से नहीं लड़ पाया, तो यह फंगस अंदर ही अंदर शरीर को “खाना” शुरू कर देता है. फेफड़ों में सूजन, तेज बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. एस्परगिलोसिस की मृत्यु दर 20% से 40% तक होती है और इसका इलाज करना भी मुश्किल होता जा रहा है, क्योंकि यह फंगस धीरे-धीरे दवाओं के प्रति प्रतिरोधक बनता जा रहा है.
कहां सबसे ज्यादा खतरा?अध्ययन में बताया गया है कि एस्परजिलस फ्लेवस नामक प्रजाति, जो गर्म और ट्रॉपिकल क्लाइमेट में पाई जाती है, अगर प्रदूषण और फॉसिल फ्यूल के जलने की यही रफ्तार रही, तो 2100 तक यह फंगस अपनी पहुंच 16% और बढ़ा सकता है. वहीं एस्परजिलस फ्यूमिगेटस (जो ठंडी जलवायु में पनपता है) उत्तरी ध्रुव की ओर फैल सकता है और यूरोप में 90 लाख लोगों को खतरे में डाल सकता है. दूसरी ओर, सब-सहारा अफ्रीका जैसे इलाकों में तापमान इतना बढ़ सकता है कि वहां ये फंगस जीवित नहीं रह पाएगा. लेकिन इसका भी पारिस्थितिकीय संतुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है.
कैसे करें बचाव?विशेषज्ञों का कहना है कि फंगल इन्फेक्शन को गंभीरता से लेना बहुत जरूरी है. साफ-सफाई, हाइजीन और लक्षणों की समय रहते पहचान ही इससे बचाव के प्रमुख उपाय हैं. इसके अलावा सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों को भी फंगल बीमारियों पर रिसर्च और दवा विकास में तेजी लानी होगी.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.



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