शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी, तनाव, जंक फूड और स्क्रीन के पीछे बिताया गया वक्त, ये सभी मिलकर भारत की महिलाओं के लिए एक नई और चुपचाप फैलती बीमारी का रास्ता बना रहे हैं- मोटापा. एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 35 से 49 वर्ष की करीब 50% महिलाएं मोटापे या ज्यादा वजन की शिकार हैं. ये आंकड़ा न सिर्फ महिलाओं की फर्टिलिटी पर असर डालता है, बल्कि दिल की बीमारियों, पीसीओएस, जेस्टेशनल डायबिटीज और गर्भपात जैसे गंभीर खतरों की भी चेतावनी देता है.
इंडियन जर्नल ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन, जो इंडियन सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन द्वारा समर्थित है, बताता है कि दक्षिण एशियाई महिलाओं में सेंट्रल ओबेसिटी (पेट के आसपास चर्बी) का भार सबसे ज्यादा है. खास बात यह है कि 18 से 30 साल की महिलाएं भी तेजी से इस खतरे की चपेट में आ रही हैं.
क्या कहते हैं सर्वे?नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के आंकड़ों के मुताबिक, शहरी भारत में 33.5% महिलाएं और ग्रामीण क्षेत्रों में 19.7% महिलाएं मोटापे से जूझ रही हैं. प्रेग्नेंसी के दौरान यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है, क्योंकि 23.1% मोटी महिलाएं जेस्टेशनल डायबिटीज से प्रभावित हो रही हैं, जिससे ना सिर्फ मां बल्कि बच्चे की सेहत भी खतरे में पड़ती है. नवजात शिशुओं को NICU (नवजात गहन चिकित्सा इकाई) में भर्ती करने की नौबत तक आ सकती है.
एक्सपर्ट की क्या राय?मशहूर डॉक्टर नंदिता पालशेटकर का कहना है कि मोटापे को समय रहते कंट्रोल करना न सिर्फ फर्टिलिटी को सुधारता है बल्कि आगे चलकर होने वाली बीमारियों से भी बचाव करता है. वहीं, एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. पिया बल्लानी ठाक्कर ने कहा कि मोटापे से निपटने की रणनीति उम्र और जीवन के हर चरण में अलग होनी चाहिए. गर्भधारण से पहले वजन घटाना जरूरी है, गर्भावस्था में वजन की मॉनिटरिंग होनी चाहिए, और डिलीवरी के बाद धीरे-धीरे वजन घटाने के उपाय अपनाने चाहिए.
रिपोर्ट में पहली बार महिलाओं के लिए एक स्टेपवाइज एल्गोरिदम भी प्रस्तावित किया गया है, जो डॉक्टरों को मोटापे की पहचान और इलाज में मदद करेगा. अच्छी खबर यह है कि अगर सही समय पर कदम उठाया जाए तो सिर्फ 5-10% वजन घटाने से भी जीवन की क्वालिटी में बड़ा सुधार हो सकता है.