Last Updated:May 17, 2025, 20:35 ISTterracotta art and chiteri art: सभी राज्यों और क्षेत्रों की अपनी-अपनी कलाएं और विधाएं हैं. हम आपको बुंदेलखंड की एक कला के बारे में बताने जा रहे हैं जो समय के साथ विलुप्त होती जा रही हैं. हालांकि, इन्हें फिर से …और पढ़ेंफाइल फोटो झांसी: बुंदेलखंड और झांसी अपनी लोक कला, लोक साहित्य और लोक परंपरा के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है लेकिन, समय बीतने के साथ यहां तमाम कलाएं विलुप्त होती जा रही हैं. इसका एक बड़ा कारण संसाधनों का अभाव भी है. हालांकि, अब जिला प्रशासन ने इन तमाम कलाओं को पहचान दिलाने के लिए प्रयास शुरू किया है. इसी क्रम में झांसी के राजकीय संग्रहालय में चितेरी कला को टेराकोटा पर उकेरना सिखाया जायेगा.10 दिन में सीखिए हुनर18 से 27 मई तक 10 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. इस कार्यशाला में बुन्देलखण्ड की सुविख्यात चितेरी कला को टेराकोटा पर उकेरना सिखाया जायेगा. राजकीय संग्रहालय में इसे बनाने के गुर भी सिखाए जायेंगे. इस कार्यशाला के जरिए संग्रहालय प्रयास कर रहा है कि हम बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक विरासत को भी बचा सकें. इस कला अभिरूचि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत टेराकोटा और चितेरी कला की प्रशिक्षिका नीलम सारंगी रहेंगी. कार्यक्रम में वही प्रतिभागी शामिल होंगे जिन्होंने 15 मई तक अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया है. अगर आप इस बार चूक गए हैं तो इस बारे में अब जानकारी समय समय पर लेते रहिएगा. इससे अगली बार जब ऐसी कार्यशाला का आयोजन होगा तब आप शामिल हो सकेंगे.
प्रतिभागियों का पंजीयन गूगल फार्म और संग्रहालय से आवेदन पत्र प्राप्त कर किया जा सकता है. गूगल फार्म कोड स्कैन कर ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है. इस कार्यशाला में मात्र 50 प्रतिभागियों का आवेदन स्वीकार किया जायेगा जो प्रथम आगत प्रथम स्वागत आधार पर होगा.
मराठा युग में मिली पहचानचितेरी बुंदेलखंड की एक लोक कला है जिसे मराठा युग में विशेष पहचान मिली. चितेरी कला में सधे अभ्यास और रंगों के सही उपयोग से एक मिनट में सामान्य आकार का चित्र दीवार पर चित्रित हो सकता है. इस कला में पारंगत लोगों को चितेरा कहा जाता है. चितेरी कला को बुंदेली कलम भी कहते हैं और इस कला में राम कथा को खासा महत्व मिला है जो झांसी, ओरछा, दंतिया के महलों और मंदिरों में देखी जा सकती है. चिकनी सतह पर तूलिका से चित्र बनाना चितेरी कला की विशेष पहचान मानी जाती है. इसके रंगों को बनाने के लिए प्राकृतिक चीजों का प्रयोग किया जाता था. गेंदे से पीला रंग बनता तो चुकंदर से लाल रंग बनाया जाता था. इसके आलावा टेसू से गुलाबी और पलाश से नीला रंग बनाया जाता था. वर्तमान में फ्लोरा सेंट पाउडर को गोंद या फेवीकोल में मिलाकर रंग तैयार किए जाते हैं.
भारत पाकिस्तान की ताज़ा खबरें News18 India पर देखेंLocation :Jhansi,Uttar Pradeshhomeuttar-pradeshझांसी में कल से शुरू हो रही है इस बुंदेली कला की वर्कशॉप, टेराकोटा और चितेरी ह