Last Updated:May 06, 2025, 15:31 ISTWedding customs : यहां मंडप बनाने के लिए बाहर से कलाकार नहीं बुलाते. गांव के ही लोग इस काम को निपटाते हैं. घर की महिलाएं मंडप बनाने वाले पुरुषों पर रंग, अबीर-गुलाल फेंकते हुए गीत गाती हैं. X
माड़ो यानी शादी का मंडप बनाते हुए गांव के लोग हाइलाइट्सबलिया में मंडप बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है.ये काम गांव के पुरुष करते हैं, महिलाएं गीत गाती हैं.वधू पहला बांस पांच कन्याओं के साथ रखती है.Wedding rituals/बलिया. आजकल शादी-विवाह के दौरान रेडीमेड मंडप प्रचलन में आ गए हैं. लेकिन बलिया जनपद की शादियों में आज भी पुरानी चीजें देखने को मिल जाती हैं. मंडप बनाने की परंपरा बलिया में बहुत पुरानी है. यहां मंडप बनाने के लिए बाहर से कलाकार नहीं बुलाए जाते हैं. गांव के ही लोग इस काम को निपटाते हैं. जिसके घर शादी रहती है, उस घर की महिलाएं मंडप बनाने वाले पुरुषों पर रंग, अबीर-गुलाल फेंकते हुए खूब गीत गाने के साथ नाचती भी हैं. बलिया के रामाशीष चौक बालेश्वर घाट निवासी बुजुर्ग डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि बलिया में शादी के दौरान एक अनोखी परंपरा आज भी देखने को मिलती है. शादी का मंडप तो हर जगह बनाया जाता है. लेकिन बलिया में ये मंडप बेहद खास होता है. बलिया में मंडप बनाने को माड़ो छावन कहा जाता है.
नौ हरे बांस
बलिया में शादी का मंडप बनाने के लिए नौ हरे बांस की जरूरत पड़ती है. इसके बाद एक लंबी घास मुज (पतलव) लाया को लगाया जाता है. बुजुर्ग बताते हैं कि ये एक ऐसी परंपरा है जो परिवार को जोड़ने का संदेश देती है. इसी मंडप में लड़के और लड़की की शादी होती है. नए जीवन की शुरुआत होती है. माड़ो छाने यानी मंडप बनाने का काम महिलाएं नहीं बल्कि, पुरुष करते हैं. महिलाएं खूब गीत गाने के साथ नाचती भी हैं. कुल मिलाकर वातावरण खुशहाल रहता है.
पहला स्पर्श लड़की कासबसे पहला बांस लड़की (जिसका शादी हो रहा है) स्थापित करती है, इस दौरान लड़की को पांच कुंवारी कन्याएं स्पर्श की रहती हैं. इसके बाद महिलाएं मंडप बनाने वाले पुरुषों पर रंग, अबीर-गुलाल के साथ हल्दी भी लगाती हैं. मंडप का काम पूरा होने के बाद सभी लोगों को रस पिलाया जाता है. मंडप बनाने के लिए कोई बाहर से नहीं बुलाया जाता है. सभी लोग गांव के होते हैं, जिन्हें पहले सूचित कर दिया जाता है कि आज हमारे यहां माड़ो छाना है.
Location :Ballia,Uttar Pradeshhomelifestyle5 कन्याओं का स्पर्श और मंडप छाते लोग…ये परंपरा नहीं, शादियों का प्राण है