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Pope Francis What is Sepsis and Its Symptoms Risks Factors Treatment | डबल निमोनिया के बाद पोप फ्रांसिस को सेप्सिस का रिस्क, जरूरी ऑर्गन्स पर इस तरह करता है अटैक



What is Sepsis: 88 साल के पोप फ्रांसिस डबल निमोनिया और सीवियर लंग इंफेक्शन की वजह से क्रिटिकल कंडीशन में हैं. वेटिकन ने कंफर्म किया है कि उन्हें लंबे वक्त से अस्थमा से जुड़ा रिस्पिरेटरी प्रॉब्लम है और होश में होने के बावजूद वो खतरे में हैं. उन्हें सांस लेने में मदद के लिए हाई फ्लो ऑक्सीजन दिया जा रहा है और प्लेटलेट्स काउंट कम होने के कारण ब्लड ट्रासफ्यूजन किया जा रहा है. 

सेप्सिस को लेकर चिंता
डॉक्टर्स को डर है कि पोप फ्रांसिस को सेप्सिस हो सकता है, जो एक जानलेवा स्थिति है, ये तब होती है जब इंफेक्शन ब्लड स्ट्रीम में फैल जाता है, जिससे संभावित रूप से ऑर्गन फेलियर और मौत हो सकती है. अपने क्रोनिक लंग इश्यू को देखते हुए, पोप फ्रांसिस रिस्पिरेटरी इंफेक्शन को लेकर सेंसिटिव हैं, खासकर सर्दियों में. उनके शुरुआती डायग्नोसिस में एक कॉम्पलेक्स वायरल, बैक्टीरियल और फंगल रिस्पिरेटरी इंफेक्शन शामिल था, जो बाद में दोनों फेफड़ों में निमोनिया में बदल गया.
रोम (Rome) के जेमेली हॉस्पिटल (Gemelli Hospital) के डॉ. सर्जियो अल्फिएरी (Dr. Sergio Alfieri) ने इस बात पर फोकस किया है कि प्राथमिक खतरा रोगाणुओं के रक्तप्रवाह में प्रवेश करने की संभावना है, जिससे सेप्सिस हो सकता है। हालाँकि शुक्रवार तक सेप्सिस का कोई सबूत नहीं मिला था, लेकिन शनिवार को किए गए रक्त परीक्षणों में प्लेटलेट की संख्या कम पाई गई, जो संक्रमण या दवा के बुरे असर के कारण हो सकता है. अल्फीरी ने इस बात पर जोर दिया कि अगर सेप्सिस डेवलप होता है, तो पोप फ्रांसिस के लिए उनकी उम्र और सांस से जुड़े कॉम्पलिकेशंस को देखते हुए ठीक होना बेहद मुश्किल होगा.

सेप्सिस क्या है?सेप्सिस तब होता है जब इम्यून सिस्टम किसी इंफेक्शन को लेकर ओवररिएक्ट करता है, जिससे हेल्दी टिशू और अंगों को नुकसान पहुंचता है. इससे गंभीर सूजन, कई मल्टी-ऑर्गन फेलियर और मौत हो सकती है. अगर इसका इलाज न किया जाए, तो सेप्सिस सेप्टिक शॉक में बदल सकता है, जिससे ब्लड प्रेशर में भारी गिरावट और क्रिटिकल ऑर्गन डैमेज हो सकता है.
 
यह भी पढ़ें- पोप फ्रांसिस को हुआ डबल निमोनिया, जानिए कितनी खतरनाक है ये बीमारी, इससे कैसे बचें?

रिस्क फैक्टर्स और लक्षणसेप्सिस ओल्डर एडल्ट्स (65+), पुरानी बीमारियों (डायबिटीज, कैंसर, किडनी डिजीज) वाले लोगों और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों में ज्यादा कॉमन है. अस्पताल में भर्ती होना, गंभीर घाव, कैथेटर और ब्रीदिंग ट्यूब भी जोखिम को बढ़ाते हैं. आम लक्षणों में कम एनर्जी, बुखार, ठंड लगना, तेज सांस लेना, कंफ्यूजन, तेज हार्ट रेट, लो ब्लड प्रेशर और हद से ज्यादा दर्द शामिल हैं.

लॉन्ग टर्म कॉम्पलिकेशंससेप्सिस से बचे लोगों को ऑर्गन डैमेज, कॉगनिटिव इंपेयरमेंट और मेंटल हेल्थ इशू का सामना करना पड़ सकता है. रिसर्च से पता चलता है कि 50% से ज्यादा बचे लोग 5 साल के भीतर जिंदगी की जंग हार जाते हैं. जल्द इलाज से जान बचने की संभावना बढ़ जाती है, लेकिन जो लोग ठीक हो जाते हैं, उनमें भविष्य में संक्रमण का जोखिम अधिक रहता है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.



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