नई दिल्ली: सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) को भारत के सबसे सफल कप्तानों में गिना जाता है. सौरव गांगुली ने 1996 में इंग्लैंड के खिलाफ अपने पहले ही टेस्ट में शतक जड़कर अपने टेस्ट करियर जोरदार आगाज किया था. बाएं हाथ के स्टाइलिश बल्लेबाज सौरव गांगुली ने टीम को ऐसे मुकाम पर पहुंचाया जो देश ही नहीं, बल्कि देश के बाहर भी जीतना जानती थी. गांगुली की कप्तानी में ही टीम इंडिया 1983 के बाद 2003 में वर्ल्ड कप के फाइनल तक पहुंची. सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट टीम को सामने वाली टीम की आंखों में आंखें डालकर जोशीले अंदाज में खेलना सिखाया. यह भी सच है कि अपनी दबंगई के चलते टीम इंडिया के इस पूर्व कप्तान को कई बार विवादों में भी फंसना पड़ा. आइए एक नजर डालते हैं गांगुली से जुड़े विवादों पर:
1. सौरव गांगुली पर लगा बैन
सौरव गांगुली को खेल के दौरान अंपायर के गलत निर्णय लेने से बहुत ज्यादा चिढ़ है. इस गुस्से को वे छिपाते भी नहीं हैं. यदि उनका कोई निर्णय गलत हो जाए तो वे खुद पर भी गुस्सा निकालने में कोताही नहीं बरतते. ऐसे में अंपायरों की तरफ से किए गए गलत निर्णय को लेकर उनकी झड़प कोई बड़ी बात नहीं कही जा सकती. उन्हें कई बार अंपायर से मैदान पर ही निर्णय को लेकर सवाल-जवाब करते हुए आज भी पुराने मैचों की वीडियो रिकॉर्डिंग में देखा जा सकता है. साल 1998 में भारत दौरे पर आई ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ बेंगलुरु में मैच चल रहा था.
इस मैच के दौरान अंपायर ने उन्हें गलत आउट दे दिया था तो उन्होंने पिच पर ही अपना गुस्सा जाहिर कर दिया था. इसके लिए उनके ऊपर एक मैच का बैन भी लगा था. इसी तरह से साल 2000 में भी जिंबाब्वे के खिलाफ मैच के दौरान उन पर अंपायरों को धमकाने के लिए बैन लगा था. साल 2001 में श्रीलंका के खिलाफ तो अंपायर ने उन्हें एलबीडब्ल्यू दे दिया तो उन्होंने गुस्से में अपना बल्ला ही उल्टा तान दिया था. इसके लिए उन्हें बेहद आलोचना का सामना करना पड़ा था और उन पर फिर से एक मैच का बैन लगा था. हालांकि वीडियो रिप्ले में अंपायर का निर्णय गलत भी साबित हो गया था.
2. लॉर्ड्स की परंपरा तोड़कर टी-शर्ट निकालकर लहराना
क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लंदन के लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड को अपनी परंपराओं के लिए जाना जाता है. इस मैदान की बहुत सारी परंपराएं आज भी कायम हैं, जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के लिए भी नहीं बदलती हैं. इन्हीं में से एक परंपरा अच्छे तरीके से कपड़े पहनने की भी है, लेकिन साल 2002 में इसी मैदान पर नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल के दौरान युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ की जबर्दस्त पारियों ने जैसे ही भारतीय टीम को 326 रन का उस समय असंभव कहा जाने वाला लक्ष्य हासिल कराकर खिताब जिताया, तो गांगुली ने उसी समय लॉर्ड्स की बॉलकनी में अपनी टीशर्ट निकालकर हवा में लहरानी शुरू कर दी. बहुत दिन तक उनके इस कारनामे को युवाओं ने जीत का जश्न मनाने के ट्रेंड के तौर पर फॉलो भी किया. हालांकि इसे लेकर अंग्रेजी अखबारों ने उनकी बेहद आलोचना की और भारतीय क्रिकेट में भी कई वरिष्ठ क्रिकेटरों ने इसे गलत करार दिया, लेकिन गांगुली ने किसी की परवाह नहीं की.
3. मैच रेफरी के साथ गांगुली का बड़ा पंगा
दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ साल 2001 में भारतीय टीम को पोर्ट एलिजाबेथ टेस्ट मैच के दौरान अजब स्थिति का सामना करना पड़ा था. मैच के दौरान कुछ बातों को लेकर मैच रेफरी माइक डेनिस के साथ गांगुली की ठन गई. इसके बाद डेनिस ने भारतीय क्रिकेट टीम की छोटी-छोटी चीजों को हाईलाइट करना शुरू कर दिया. हालात यहां तक खराब हुए कि महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर पर बॉल टेंपरिंग के आरोप लगा दिए गए.
साथ ही वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह, दीपदास गुप्ता और शिवसुंदर दास को ज्यादा अपील करने का दोषी बना दिया गया. गांगुली को सबके सामने डेनिस ने अपने क्रिकेटर्स पर नियंत्रण नहीं कर पाने के लिए डांट दिया. इसके साथ ही इन सभी को एक-एक टेस्ट मैच के लिए सस्पेंड कर दिया गया. इसके विरोध में सौरव गांगुली अपनी टीम को पवेलियन वापस ले गए. हालांकि बाद में समझाने पर वे टीम को वापस मैदान पर ले आए, लेकिन तब तक यह मुद्दा चर्चित हो चुका था.
अगले दिन भारतीय संसद में इसे रंगभेद का मसला बताते हुए टीम इंडिया को तत्काल वापस बुलाने का मुद्दा उठा. बीसीसीआई ने सेंचुरियन टेस्ट में डेनिस के मैच रेफरी रहने पर टीम उतारने से इंकार कर दिया. आईसीसी ने सहवाग को छोड़कर बाकी सभी की सजा खत्म कर दी, लेकिन डेनिस को हटाने से इंकार कर दिया. साथ ही कहा कि यदि अफ्रीका और भारत आपसी सहमति से बिना डेनिस के ये टेस्ट खेलेंगे तो इसे अधिकृत नहीं माना जाएगा. दोनों टीम डेनिस के बिना ही उतरी और आज तक आईसीसी इस टेस्ट को अधिकृत नहीं मानता है.
4. ऑस्ट्रेलिया के स्टीव वॉ के साथ टॉस को लेकर विवाद
सौरव गांगुली पर एक आरोप और लगा था कि वे मैदान पर जानबूझकर देरी से पहुंचते थे और इतनी देर तक विपक्षी कप्तानों को टॉस के लिए इंतजार करना पड़ता था. गांगुली यह काम विपक्षी कप्तान पर मानसिक दबाव बनाने के लिए करते थे. खासतौर पर ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वॉ ने इस बात का आरोप गांगुली पर लगाया था. स्टीव ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि 2001 के भारत दौरे पर उन्हें कम से कम 7 बार टॉस के लिए सौरव का इंतजार करना पड़ा. आईपीएल 2008 के दौरान कोलकाता नाइट राइडर्स के कप्तान के तौर पर गांगुली ने राजस्थान रॉयल्स के कप्तान शेन वॉर्न को ऐसे ही इंतजार करा दिया था तो वार्न मैदान पर ही उनके ऊपर भड़क पड़े थे.
5. ग्रेग चैपल के साथ विवाद
सौरव गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान और टीम इंडिया के पूर्व कोच ग्रेग चैपल की क्रिकेट की जानकारी से मुग्ध होकर उन्हें जॉन राइट के इस्तीफा देने के बाद नया कोच बनवाने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन चैपल ने साल 2005 में आते ही टीम में खिलाड़ियों के बीच फूट डालना शुरू कर दिया. चैपल ने सचिन तेंदुलकर और खुद सौरव गांगुली जैसे सीनियर क्रिकेटर्स की अनदेखी करना शुरू कर दिया. इसकी वजह से गांगुली और चैपल के बीच मतभेद हो गया. इसका फायदा बीसीसीआई में गांगुली के मनमाने व्यवहार से दुखी होकर मौका तलाश रहे कुछ अधिकारियों ने उठाया और उन्हें कप्तान के पद से हटाने के साथ ही टीम से भी बाहर कर दिया. हालांकि बाद में गांगुली ने टीम में दोबारा वापसी की थी.
6. KKR की कप्तानी से हटाने का विवाद
इंडियन प्रीमियर लीग के 2008 सीजन शुरू होने पर बीसीसीआई ने सभी फ्रेंचाइजी को टीम इंडिया के स्टार क्रिकेटर्स को अपने आइकन खिलाड़ी के तौर पर चुनने का निर्देश दिया था. कोलकाता की फ्रेंचाइजी लेने के कारण बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान ने सौरव गांगुली को स्थानीय खिलाड़ी होने के नाते अपनी टीम का आइकन और कप्तान चुन लिया था. लेकिन शाहरुख और गांगुली, दोनों के ही मनमाने स्वभाव का होने और केकेआर टीम के बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाने के चलते दोनों के बीच मनमुटाव हो गया. शाहरुख ने आईपीएल 2011 से पहले गांगुली को टीम से हटाकर कप्तानी गौतम गंभीर को सौंप दी थी. इससे कोलकाता में बेहद हंगामा हुआ था और जब गांगुली दूसरी टीम की तरफ से कोलकाता में केकेआर के खिलाफ खेले तो आधे से ज्यादा दर्शक स्टेडियम में उनका समर्थन कर रहे थे.
7. शास्त्री के कोच पद के इंटरव्यू में नहीं आना
सौरव गांगुली और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कोच रवि शास्त्री के बीच के संबंध कभी अच्छे नहीं रहे हैं, लेकिन ये मतभेद साल 2016 में तब सभी के सामने आ गए थे, जब बीसीसीआई की तरफ से टीम इंडिया के कोच के चयन के लिए सचिन तेंदुलकर सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण की समिति बनाई गई. इस समिति ने अनिल कुंबले को चीफ कोच के तौर पर चुन लिया. रवि शास्त्री ने भी इस पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनके बैंकॉक से वीडियो कांफ्रेंसिंग पर दिए गए इंटरव्यू के दौरान गांगुली मौजूद नहीं थे. शास्त्री ने कहा कि गांगुली जानबूझकर नहीं आए और इस तरह उन्होंने मेरा अपमान किया है. इस पर गांगुली ने भी पलटवार करते हुए कहा था कि शास्त्री को भी इंटरव्यू के लिए बैंकॉक के बजाय भारत में ही रहना चाहिए था.

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