Uttar Pradesh

चुनाव से ठीक 1 साल पहले बनी पार्टी, कांग्रेस को उखाड़ कब्जा ली सत्ता, भाजपा बनी सारथी!



देश में आम चुनाव का बिगुल बज चुका है. सभी पार्टियां जोर-शोर से चुनाव प्रचार में कूद चुकी हैं. इस चुनावी शोरगुल में आज करीब साढ़े तीन दशक पहले हुए एक आम चुनाव की चर्चा करते हैं. उस चुनाव से ठीक एक साल पहले बनी एक पार्टी ने प्रचंड बहुमत वाली एक सरकार को धूल चटा दी थी. उसने उसे बेदखल कर सरकार बनाई और फिर देश की राजनीति का पूरा परिदृश्य बदल गया. हम बात कर रहे हैं 1989 के आम चुनाव की. इससे पहले 1984 में हुए आम चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी. वे चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ ही दिनों बाद हुए थे. उस वक्त कांग्रेस पार्टी ने 414 सीटें जीतकर इतिहास बना दिया. आप इस जीत की व्यापकता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि दूसरे नंबर पर रहने वाली तेलुगू देशम पार्टी को केवल 30 सीटें मिली थीं.

दरअसल, राजीव गांधी की सरकार में एक सबसे कद्दावर नेता हुआ करते थे विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह). वह राजीव कैबिनेट में रक्षा और वित्त जैसे बड़े-बड़े मंत्रालय संभाल रहे थे. उसी दौरान बोफोर्स तोप सौदे में धांधली की रिपोर्ट आई और वीपी सिंह ने इसके लिए सीधे अपने पीएम राजीव गांधी पर निशाना साधा. यह बात 1988 की है. देश में बोफोर्स तोप सौधे में धांधली की यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. कटघरे में सीधे तौर पर राजीव गांधी को खड़ा किया गया. हालांकि, बाद में इस कथित घोटाले में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं निकला. ऐसे आरोप लगाए गए कि इस सबसे बड़े हथियार सौदे में 65 करोड़ रुपये की दलाली हुई है. वीपी सिंह ने इस मामले पर सीधे तौर पर राजीव गांधी की आलोचना की. इस कारण उन्हें कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया गया. बर्खास्त किए जाने के बाद वीपी सिंह ने कांग्रेस पार्टी भी छोड़ दी.

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जेपी ने जन्म दिन पर बनी पार्टीइसके बाद वीपी सिंह ने राजीव गांधी की सरकार को सत्ता से हटाने के लिए 11 अक्टूबर 1988 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर जनता पार्टी और उसके अन्य धड़ों को मिलाकर जनता दल बनाया. फिर उन्होंने कई अन्य दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन बनाया. इस गठबंधन ने 1989 के आम चुनाव में बेहद प्रभावी तरीके से भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया और चुनाव शानदार जीत दर्ज की. इस चुनाव में हालांकि कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी थी. उसे कुल 531 में से 197 सीटें मिलीं, लेकिन दूसरे नंबर पर जनता दल थी. उसे 143 सीटें मिलीं. उस चुनाव में भाजपा तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनी. उसकी सीटें दो से सीधे बढ़कर 85 हो गईं. उस दौर में भाजपा की ओर से लालकृष्ण आडवाणी सबसे बड़े नेता बनकर उभरे थे. फिर वाम दलों को 33 सीटें मिलीं.

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संयुक्त मोर्चा की सरकारचुनाव बाद वीपी सिंह ने भापजा और वाम दलों को मिलाकर नया गठबंधन संयुक्त मोर्चा का गठन किया और केंद्र में सरकार बनाई. वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की तो दूसरी तरफ लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए आंदोलन शुरू किया. इन्हीं दोनों मसलों पर जनता दल और भाजपा के बीच दूरियां बढ़ गईं. आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा निकाली. उन्हें बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया और भाजपा ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया. फिर वीपी सिंह की सरकार गिर गई और देश में अस्थिर सरकारों का एक नया दौर शुरू हो गया, जो वर्ष 2014 तक जारी रहा. यानी 1984 के बाद करीब तीन दशक तक यह दौर चला. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में भाजपा को अपने दम पर बहुमत मिला और फिर यह परिपाटी थमी.
.Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : March 21, 2024, 17:14 IST



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