धूप में काम करने वाले लोगों की बड़ी संख्या में त्वचा के कैंसर से मौतें हो रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) संयुक्त अनुमान के अनुसार स्किन कैंसर से होने वाली प्रत्येक तीन में से एक मौत सूर्य के नीचे काम करने का कारण होती हैं. यह शोध एनवायरनमेंट इंटरनेशनल जर्नल प्रकाशित हुआ है.
शोध के अनुसार साल 2019 में धूप में काम करते समय 15 साल या उससे अधिक उम्र के 1.6 अरब लोग सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन के संपर्क में आए. सभी कामकाजी उम्र के लोगों का यह 28 प्रतिशत है. दुनियाभर में कुल कामकाजी लोगों में से एक चौथाई लोग पराबैंगनी किरणों के संपर्क में हर साल आते हैं. साल 2019 में 183 देशों में लगभग 19 हजार लोगों की मौत स्किन के कैंसर की वजह से हुई, इसमें 65 फीसदी पुरुष थे.पराबैंगनी किरण स्किन कैंसर का प्रमुख कारणडब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनोम घेब्रेयसस ने कहा कि सूर्य की पराबैंगनी किरणों से सीधे संपर्क में आना त्वचा के कैंसर का प्रमुख कारण है. श्रमिकों को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाने और उनके घातक प्रभावों को रोकने के लिए समाधान मौजूद हैं. इन्हें बड़े पैमाने पर लागू किया जाना चाहिए. आईएलओ के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ. होंगबो ने कहा कि काम पर सुरक्षित और स्वस्थ कामकाजी माहौल मौलिक अधिकार है. इससे काम करते समय पराबैंगनी किरण के जोखिम से होने वाली मौत को काफी हद तक रोका जा सकता है.
भारत में क्या है स्थितिभारत में 2019 में सूर्य की किरणों के कारण हुए स्किन कैंसर से कुल 1119 लोगों की मौत हुई है. इमें 943 पुरुष तथा 176 महिलाएं हैं. भारत में कामकाजी आबादी करीब 42 फीसदी श्रमिक सूर्य की पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आते हैं.
दो दशक में मौतों के आंकड़ों में 88 फीसदी की बढ़ोतरीविश्व स्वास्थ्य संगठन तथा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार दुनिया में कैंसर से होने वाली मौतों में तीसरी सबसे बड़ी वजह धूप में काम करने से होने वाला स्किन कैंसर है. साल 2000 से 2019 के बीच, त्वचा कैंसर से होने वाली मौतें में बढ़ोतरी हुई हैं. वर्ष 2000 में यह आंकड़ा 10,088 था, जो 20 साल में बढ़कर 18,960 हो गया है. यानी 88 फीसदी की वृद्धि हुई है.
देरी से पता चलता है खतरास्किन कैंसर वर्षो या दशकों के संपर्क के बाद विकसित होता है. इसलिए श्रमिकों को कम उम्र से ही इससे बचाया जाना चाहिए. सरकारों को ऐसी नीतियों को लागू करना चाहिए जो श्रमिकों को इस बीमारी से बचाए.
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