Uttar Pradesh

जब गीता का अनुवाद छापने वाला कोई नहीं मिला तो गोयन्दका ने खुद छापाखाना लगाकर गीता प्रेस की शुरुआत की



हाइलाइट्सजगदयाल गोयन्दका और उनके दोस्त हर शहर और कस्बे में थे, जिनके बीच उनकी गीता के भावों को लेकर चर्चा होती थी600 रुपए का एक हैंड प्रिंटिंग प्रेस गोरखपुर में 1923 में लगाया गया, जो उतार चढ़ावों से भी गुजरा मूलतौर पर हिंदू धार्मिक किताबें छापने वाले गीता प्रेस की शुरुआत 1923 में हुई. फिलहाल ये दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशन हाउसों में है. ये महीने में “कल्याण” नाम की पत्रिका प्रकाशित करते हैं, जिसकी 93 करोड़ कापियां बिक चुकी हैं. इसके अलावा 150 किताबें छाप चुके हैं, जो 15 भाषाओं में 42 करोड़ के आसपास छपी हैं. इसमें भगवत गीता से संबंधित कई टीकाएं हैं. रामायण है. तुलसीदास रचित सभी किताबें हैं. पुराण और अन्य धार्मिक किताबें हैं. हर किसी की बिक्री और प्रिंट आर्डर हैरान करने वाला है. श्रीमद भगवत गीता की अब तक 16 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं.

किसी भी प्रकाशन गृह के लिए इससे बड़ी उपलब्धि क्या होगी कि उसका सफर करीब 100 सालों का हो चुका हो. वह बहुत सस्ती कीमत में हर किसी को वो धार्मिक किताबें उपलब्ध करा रहा हो, जिसमें इस देश की संस्कृति और धर्म बसा हुआ हो. इसकी वेबसाइट कहती है कि इस प्रकाशन गृह का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के सिद्धांतों को प्रोमोट करना है. गीता प्रेस रामायण, उपनिषद, गीता, पुराण या दूसरी जो भी किताबें छापते हैं वो बाजार में वाकई बहुत सस्ती कीमत में मिल जाती हैं.

मारवाड़ी व्यावसायी थे गोयन्दकाआधिकारिक तौर पर गीता प्रेस की शुरुआत 1923 में जयदयाल गोयन्दका ने की. वह पश्चिम बंगाल के बांकुरा में मारवाड़ी व्यावसायी थे. वह बिजनेस के सिलसिले में काफी टूर करते थे. उनके दिमाग में ऐसा कुछ करने की योजना काफी समय से थी.

गीता प्रेस गोरखपुर का प्रवेश द्वार, जो भारतीय संस्कृति, धर्म और स्थापत्य की विविधता की कहानी कहता है. (courtesy – gita press)

बिजनेस के सिलसिले में शहर कस्बों में घूमते थेउनका बिजनेस कॉटन, कैरोसिन तेल, टैक्सटाइल्स और बर्तनों का था, इस बिजनेस की वजह से वह छोटे कस्बों से लेकर शहरों तक काफी घूमते थे. वह धार्मिक शख्स थे. अलग अलग कस्बों और शहरों में उनके दोस्त थे, जिनमें व्यवसायी ज्यादा थे. ये सभी लोग सत्संग करते थे. धार्मिक किताबों पर चर्चा करते थे. सबसे ज्यादा चर्चा भगवद गीता को लेकर होती थी.

चाहते थे कि गीता को हिंदी भाषा में टीका के साथ छापेंसमस्या ये थी कि तब गीता केवल संस्कृत में उपलब्ध थी. गोयन्दका और उनके मित्रों को गीता के अच्छे और आधिकारिक अनुवाद की तलाश थी, जिसमें उसकी अच्छी टीका भी हो. उन सभी ने कोशिश किया कि गीता को इस तरह से किसी प्रकाशक से छपवाया जाए लेकिन ये कारगर नहीं हो सका. तब गोयन्दका ने तय किया कि अब वो अपना ही प्रकाशन हाउस खोलेंगे और उसी से ऐसी अनुवादित गीता छापेंगे. वैसे गोयन्दका ने खुद भी गीता पर टीका संबंधी किताब समेत कई किताबें गीता प्रेस के लिए लिखीं.

गीता प्रेस और गीता भवन के संस्थापक जयदयाल गोयन्दका. उन्होंने गीता प्रेस तब शुरू की, जब किसी भी प्रकाशक ने गीता के हिन्दी अनुवाद को छापने में असमर्थता जताई.

गोरखपुर में इसलिए लगा गीता प्रेसगोयन्दका के दोस्त घनश्याम जालान गोरखपुर में बिजनेसमैन थे. उन्होंने अपने शहर में प्रिटिंग प्रेस लगाने के लिए सेटअप देने का ऑफर दिया. अप्रैल 1923 गीता प्रेस गीता के पहले अनुवाद को टीका के साथ छापने के लिए तैयार था. ये छपाई हैंड प्रिंटिंग प्रेस पर हुई, जिसे 600 रुपए में खरीदा गया था.

तब देश में भी महत्वपूर्ण सामाजिक राजनीतिक बदलाव हो रहे थेशुरू के 03 साल गीता प्रेस उतार चढ़ावों के बीच झूलता रहा लेकिन 1926 तक वह हिंदी प्रकाशन व्यवसाय में एक गंभीर पहचान बना चुका था. इसी दौरान उन्होंने मंथली मैगजीन “कल्याण” छापनी शुरू की, ये पत्रिका पूरी तरह से हिंदू धर्म को समर्पित थी. इस समय देश गुलाम था. कई तरह के महत्वपूर्ण सामाजिक राजनीतिक बदलाव हो रहे थे.

गीता प्रेस ने अपनी स्थापना के बाद से “कल्याण” पत्रिका और 1850 से ज्यादा किताबें छापी हैं. जो 15 भाषाओं में प्रकाशित हुईं. सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब गीता है, जिसकी 16.21 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं. (courtesy gita press)

हिंदी भाषा बढ़ रही थी और राष्ट्रवाद भीगीता प्रेस हिंदी में किताबें निकाल रहा था, जो हिंदुओं की भाषा थी. हिंदी का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ रहा था. ये वो दौर था जब हिंदुओं और मुसलमानों में राष्ट्रवाद की भावना चरम पर थी, बढ़ रही थी. इसने “कल्याण” जैसी पत्रिका के लिए जगह ही नहीं बनाई बल्कि उसकी गति को भी तेज किया, ये एक तरह से हिंदू राष्ट्रवाद का प्रसार करने का वाहक बनी.

“कल्याण” पत्रिका हनुमान प्रसाद पोद्दार देखते थेशुरुआती सालों में “कल्याण” पत्रिका का हनुमान प्रसाद पोद्दार देखते थे. जो मारवाड़ी नेता के तौर पर उभर रहे थे और उनका संबंध हिंदू महासभा से था. लिहाजा “कल्याण” के जरिए सनातन धर्म के दृष्टिकोण और उसको बढ़ावा देने का काम भी जारी था. पोद्दार यद्यपि सियासी नहीं थे लेकिन हिंदू धर्म को लेकर काफी मुखर बातें लिखते थे. हालांकि इन सबके बीच “कल्याण” पत्रिका कुल मिलाकर राष्ट्रवाद और आधुनिक भारत की योजना को मुख्य तौर पर आगे बढ़ाने का काम कर रही थी.

बहुत सस्ते में हिंदू धार्मिक किताबें छापी जा रही थीं“कल्याण” के साथ गीता प्रेस बहुत सस्ते में रामायण, गीता, महाभारत, पुराण और अन्य हिंदू धार्मिक किताबें छाप रहा था. इसने गीता प्रेस को अलग पहचान दी.

गीता प्रेस के पास एक बेहतरीन रिसर्च लाइब्रेरी भी है, जहां 3000 से ज्यादा पुरानी किताबों की पांडुलिपियां और अमूल्य दस्तावेजी धरोहर मौजूद है. (courtesy gita press)

अंग्रेजों के जमाने में देश में जो भी बड़े किताबें प्रकाशित करने वाले प्रकाशन हाउस थे, वो सभी धीरे धीरे बंद होते गए लेकिन गीता प्रेस का सिलसिला चलता रहा. ये हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, नेपाली समेत 15 से ज्यादा भाषाओं में किताबें छापते हैं. देशभर में उनके अपने 20 से ज्यादा रिटेल स्टोर हैं जबकि 2500 से ज्यादा विक्रेता उनकी किताबें बेचते हैं. ये विदेशों में भी बिकने जाते हैं. साथ ही आनलाइन तौर पर भी किताबें बेचने का प्लेटफॉर्म धड़ल्ले से चल रहा है.

कोरोना में गीता प्रेस का कारोबार खूब बढ़ा, मांग पूरी नहीं कर पा रहे थेकोरोना में जबकि दुनियाभर के प्रकाशक मुश्किल में थे,तब गीता प्रेस फलफूल रहा था. इन दिनों उनकी किताबों की डिमांड कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी. इतनी अधिक मांग आ रही थी कि उसको पूरा करना मुश्किल हो रहा था. गीता प्रेस के आधिकारिक सूत्र बनाते हैं 2022-23 में गीता प्रेस से 111 करोड़ की 240 करोड़ प्रतियां बेची गईं.

गीता प्रेस हर साल रामचरित मानस की 10 लाख प्रतियां बेचता है. हर महीने छपने वाली कल्याण पत्रिका का प्रिंट आर्डर 1.60 लाख का है. पिछले कुछ सालों में कल्याण की 17 करोड़ कापियां बेची जा चुकी हैं.

घाटे की भरपाई कैसे होती हैगीता प्रेस के बारे में अक्सर ये भी सुना जाता है कि वो घाटे में रहता है. इसकी आधिकारिक वेबसाइट कहती है कि मूलतौर पर गीता प्रेस को चलाने वाली मुख्य संस्था गोविंद भवन कार्यालय है. ये गीता प्रेस के साथ कई संस्थाओं को संचालित करता है, जिसमें कोलकाता का गोविंद भवन, ऋषिकेश का गीता भवन, ऋषिकेश का ही आयुर्वेद संस्थान, वैदिक स्कूल शामिल हैं, तो गीता प्रेस के घाटे को इन संस्थाओं की कमाई से पूरा किया जाता है.

ये गीता प्रेस गोरखपुर का भवन, जिसने अपना एक सिद्धांत कभी नहीं तोड़ा, ना तो दान लेंगे और ना किताबों के लिए कभी कोई विज्ञापन. (courtesy gita press)

ना दान और ना विज्ञापनगीता प्रेस की वेबसाइट कहती है कि ना तो हम कभी दान लेते हैं औऱ ना ही कभी कोई विज्ञापन अपनी किताबों या पत्रिका में छापते हैं. गीता प्रेस का कामकाज रोज सुबह प्रार्थना के साथ शुरू होता है. जब तक दिनभर प्रेस में काम चलता है, एक शख्स भगवान का नाम लिए चारों ओर घूमता रहता है.

बेहतरीन रिसर्च लाइब्रेरीगीता प्रेस ने कुछ मामलों में बहुमूल्य धरोहरों को भी संजोया है,.यहां एक रिसर्च लाइब्रेरी है, जहां गीता और अऩ्य धार्मिक किताबों की पुरानी से पुरानी पांडुलिपियां, दस्तावेज और हर तरह की हिंदू धर्म से जुड़ी किताबें मिल जाएंगी. साथ ही उनकी एक चित्र गैलरी है, जहां देवताओं, संतो और धर्म से जुड़ी अमूल्य धरोहरें भी हैं. गीता प्रेस की हर किताब का आवरण या अंदर का चित्र देश के चित्रकारों औऱ गीता से जुड़े चित्रकारों की टीम बनाती है. वो सभी यहां संग्रहित हैं.

गीता प्रेस का मुख्य द्वार खासा दर्शनीयगीता प्रेस का मुख्य द्वार और भवन अपने आपमें दर्शनीय है. ये नया द्वारा और नया भवन 1955 में बनकर तैयार हुआ था, तब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उसका उद्घाटन किया था. इस भवन का बाहरी हिस्सा पूरी तरह से भारतीय संस्कृति और धर्म के साथ वैविध्य स्थापत्यकला के दर्शन कराता है.

फिर जमीन पर नहीं रखी जातीं किताबेंपत्रकार शिल्पी सेन ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है, गीता प्रेस में छप जाने के बाद बाइंडिंग से बाज़ार तक लाने की प्रक्रिया में उस काग़ज़ को फिर कभी ज़मीन पर नहीं रखा जाता
.Tags: Gita Press Gorakhpur, Gorakhapur, Religious, Religious propagandaFIRST PUBLISHED : June 20, 2023, 17:29 IST



Source link

You Missed

Scroll to Top