झांसी. पूरे बुंदेलखंड में गोवर्धन पूजा पारंपरिक ढंग से मनाई जाती है. दीवाली के अगले दिन पड़ने वाले इस त्योहार पर दीवारी गाने की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है. गोवर्धन पूजा के बाद मौनिया की टोलियां घूम घूमकर दीवारी गीत गाती हैं. दशकों पुरानी इस परंपरा को बुंदेलखंड के युवा आज भी जीवित रखे हुए हैं. गांव में घूमने के साथ ही ये टोलियां झांसी के मशहूर किले तक भी जाती हैं. यहां किले के द्वार पर ये टोलियां मौनिया नृत्य करती हैं और दीवारी गीत से पुराने समय को जीवंत कर देती हैं.मौनिया नृत्य करने वाली एक टोली के सदस्य योगेश रायकवार ने बताया कि टोलियां सुबह पूजन करने के बाद गाय की तरह झुककर एक थाली से पानी पीती हैं. इसके बाद टोली परिक्रमा करने के लिए निकलती है. एक टोली 12 गांव की मेढ़ की परिक्रमा करती है. गांव की सीमा को मेढ़ कहा जाता है. इस प्रकार 12 साल तक परिक्रमा करने के बाद मथुरा जाकर उद्यापन किया जाता है.
योगेश ने बताया कि पारंपरिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण की गाय खो जाने के कारण वह क्षुब्ध हो गए थे. उन्होंने मौन साध लिया था. कृष्ण का यह रूप देख उनके साथ के बाल ग्वाले गायों को ढूंढ़ने में लग गए. काफी मशक्कत के बाद जब गाय मिली तब जाकर कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा. इसी प्रथा के तहत युवा बाल ग्वाल का भेस धरते हैं और कमर पर मोर पंख बांधकर 12 गांव घूमते हैं. अंत में श्री कृष्ण के मंदिर में पूजा करते हैं और यह यात्रा सम्पन्न होती है.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|FIRST PUBLISHED : October 27, 2022, 09:41 IST
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