Uttar Pradesh

Shardiya Navratra: मेरठ के इस मंदिर में नवरात्र के 9 दिनों में मां के 9 स्वरूपों का होता है दर्शन, ये है मान्यता



हाइलाइट्सयहां देवी मां 9 दिन धारण करती हैं अलग-अलग स्वरूपहोली के बाद 1 महीने का लगता है मेलाकुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था मंदिर को तहस- नहसमेरठ. हिंदुस्तान अध्यात्म का देश है. यहां की धरती चमत्कारों से भरी है. यहां कई चमत्कारिक मंदिर है. कल यानी सोमवार से नवरात्रि शुरू हो गई है. ऐसे में हम आपको पूरे 9 दिन, देश भर के कई चमत्कारिक मंदिर के बारे में बताएंगे. उनकी रहस्यमयी कहानियों से रूबरू कराएंगे. आज मेरठ के प्रसिद्ध चमत्कारिक “देवी माता मंदिर” के रहस्य को बताते हैं. मान्यता है कि देवी मां के इस मंदिर में माता 9 दिन 9 रूप धारण करती हैं. मां का स्वरूप जब बदलता है, तो इसका अहसास भक्तों को भी होता है. मां खुश होती हैं तो श्रद्धालु जश्न मनाते हैं और जब दुखी होती हैं तो भक्त उन्हें पूजा-अर्चना से मनाते हैं.
भैंसाली बस स्टैंड से 4 किलोमीटर चलने के बाद इस मंदिर का दर्शन होता है. इस मंदिर की कई रहस्यमयी कहानियां हैं. रामायण काल के इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने पर मां मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. नवरात्रि में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. लोग माता की पूजा-अर्चना कर अपने मनोकामना को पूर्ण होने की मन्नत मांगते हैं.
रावण की पत्नी मंदोदरी ने किया स्थापितकहा जाता है कि इस मंदिर को रावण की पत्नी मंदोदरी ने स्थापित किया था. रामायण काल के इस मंदिर में मशहूर नौचंदी का मेला लगता है. यहां आने वाले लोगों के मन में ना सिर्फ मां के दर्शन और रहस्यमयी कहानियों को जानना होता है, बल्कि यहां पर 4 किलोमीटर की सुरंग के रहस्य को भी लोग समझना चाहते हैं. कहा जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी ने मेरठ कोतवाली क्षेत्र के खंदक से यानी मंदोदरी ने अपने घर से मंदिर तक 4 किलोमीटर की सुरंग बनवाई थी. मंदोदरी सुरंग का इस्तेमाल मंदिर आने-जाने के लिए करती थी. ये सुरंग आज अस्तित्व में नहीं है, लेकिन खुदाई में प्रमाण मिले हैं.
भक्तों की हर मुराद होती है पूरीयहां के पंडित बताते हैं कि मेरठ का प्राचीन नाम मयदंत खेड़ा था. उस वक्त यह मय दानव राज की राजधानी थी. मय दानव की बेटी मंदोदरी थी. त्रेता युग में अक्सर मंदोदरी अपनी सखियों के साथ यहां पर भगवान शिव की पूजा करने आती थी. कथा, कहानियों में जिक्र मिलता है कि मंदोदरी की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और मन्नतें मांगने के लिए कहा. तब मंदोदरी ने शिव जी से अपनी मन की बातें कही. कहते हैं कि शिव के आशीर्वाद से ही यहां पर रावण से मंदोदरी का मिलन हुआ. तभी से इस मंदिर में मन से जो भी पूजा करता है उसकी मुरादें पूरी होती हैं.
कुतुबुद्दीन के सेनापति ने किया था मंदिर को तहस-नहसचंडी देवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मुगलकाल में कुतुबद्दीन ऐबक के सेनापति बाले मियां ने मंदिर की जमीन को कब्जे में लेने की कोशिश की थी. उस वक्त पंडित हजारी लाल की बेटी मधु चंडी, मंदिर को बचाने के लिए गेट पर खड़ी हो गई थी और बाले मियां से युद्ध लड़ी. युद्ध में मधु चंडी शहीद हो गई, लेकिन बाले मियां की अंगुली काट दी. जिसके बाद बाले मियां ने इस मंदिर को तहस नहस कर दिया. बाद में जहां पर बाले मियां की कटी हुई अंगुली गिरी थी वहां पर मुस्लिम समाज ने मजार बना दी. स्थानीय लोग बताते हैं कि जहां पर बाले मियां का मजार है वही असली चंडी देवी मंदिर है. मंदिर तहस नहस हो जाने के बाद पंडित चंडी प्रसाद ने मंदोदरी द्वारा बनवाई गई सुरंग के पास पूजा स्थल पर मूर्ति स्थापना की और पूजा अर्चना शुरू कर दी. उसके बाद नव चंडी देवी मंदिर की स्थापना हुई, तभी से यहां पर मेला भी लगता है.
होली के एक हफ्ते बाद यहां 3 दिन का मेला लगता था, लेकिन अब एक महीने तक मेला चलता है. मान्यता है कि मां चंडी सबकी झोली भरती है. भक्त संतान प्राप्ति के लिए भी मां के शरण में आते हैं. यहां के पूजारी बताते हैं कि भक्तों को अलग-अलग रूप में मां दर्शन देती हैं. किसी को गुस्से में दिखाई देती हैं तो किसी को प्रसन्न मुद्रा में. नवरात्रि में 9 दिन तक भक्त अलग-अलग स्वरूप में मां के दर्शन करते हैं.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: Meerut news, Navaratri, Uttarpradesh newsFIRST PUBLISHED : September 27, 2022, 07:52 IST



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