रिपोर्ट- चंदन सैनी
मथुरा. ब्रज के कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण का वास है और यहां भगवान श्री कृष्ण की अनेक लीलाएं आपको पग-पग पर देखने और सुनने को मिल जाएंगी. इन्हीं लीलाओं में से एक लीला है चिंताहरण महादेव की लीला. सावन के महीने में भोलनाथ की पूजा-अर्चना के अनगिनत किस्से और पौराणिक कथाएं सुनने को मिलती हैं. ऐसी ही एक पौराणिक कथा है कि मां यशोदा यमुना किनारे स्थित ब्रह्मांड घाट पर कृष्ण को अपने साथ लेकर जाती थीं. एक दिन जब उन्होंने वहां भगवान श्री कृष्ण को मिट्टी खाते देखा तो मां यशोदा ने कान्हा से मुंह खोलकर दिखाने को कहा था. जैसे ही बाल रूप श्रीकृष्ण ने मुंह खोला तो यशोदा मां को ब्रह्मांड के दर्शन कृष्ण के मुख में हो गए.
इतना देख मां यशोदा चिंता में पड़ गईं और भगवान शिव को पुकारने लगीं. तभी मां यशोदा की पुकार सुन भगवान शिव प्रकट हो गए और माता यशोदा ने यमुना नदी से एक लोटा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक कर अपनी चिंता का कारण बताया. तब भगवान शिव ने माता यशोदा से कहा कि यह कोई साधारण बालक नहीं हैं. यह खुद संसार को रचने वाले हैं. तब जाकर मां यशोदा की चिंता दूर हुई, फिर मां यशोदा ने भगवान शिव से यहां विराजमान होकर सभी भक्तों की चिंताएं हरने का वचन मांगा. भगवान शिव ने माता यशोदा को वचन दिया. भगवान शिव ने माता यशोदा से कहा कि यहां आकर जो भी भक्त एक लोटा यमुना जल चढ़ाएगा उसकी सभी चिंताए दूर हो जाएंगी, जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द में भी है.
दुनिया में एक मात्र चिंताहरण महादेव मंदिरयह एक मात्र मंदिर मथुरा से 25 किलोमीटर दूर महावन क्षेत्र में यमुना तट पर मौजूद है. पूरी दुनिया में ऐसा मंदिर कहीं नहीं है. मंदिर में एक लोटा यमुना जल चढ़ाने से 1108 शिवलिंगों के जल अभिषेक के बराबर फल मिलता है. चिंताहरण मंदिर के सेवायत पुजारी अनिल पांडेय ने मंदिर की मान्यता के बारे में बताते हुए कहा कि जब कृष्ण बाल रूप में थे और मां यशोदा कृष्ण के मुंह में ब्रह्मांड देखकर चिंतित थी. तभी यशोदा ने कृष्ण को यहां लाकर भगवान शिव के दर्शन कराये थे. इसका उल्लेख गर्ग संहिता और शिव महापुराण में भी मिलता है. ये शिवलिंग अद्भुत है. यहां एक शिवलिंग पर 1108 शिवलिंग का आकृतियां उभरी हुई हैं. अब यहां दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. चिंताहरण महादेव के दर्शन का खासा उत्साह युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है.
यह दूसरी मान्यता दूसरी मान्यता की मानें तो जब श्रीकृष्ण बाल रूप में थे, तब सभी देवी-देवता उनके दर्शन करने के लिए मां यशोदा के घर पहुंचे थे. मां यशोदा ने भगवान शिव के गले में लिपटे शेषनाग को देख घबरा गईं और उन्होंने भगवान शिव को लाला के दर्शन कराने से मना कर दिया. भगवान शिव ने उक्त स्थान पर बैठकर भगवान का ध्यान किया, तब श्रीकृष्ण ने यहां आकर भगवान शिव की चिंताओं का हरण किया था. भगवान शिव तब से यही विराजमान हो गए इसका उल्लेख गर्ग संहिता और शिव पुराण में भी मिलता है.
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