वाराणसी. यूपी के वाराणसी में स्थित स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का मुद्दा इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है. वाराणसी जिला कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हर ओर ज्ञानवापी विवाद की गूंज सुनाई दे रही है, लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि विश्वेश्वर महादेव शिवलिंग का जिक्र न केवल इतिहास के पन्नों में दर्ज है बल्कि हिंदूओं के धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में भी इसके बारे में कई रोचक जानकारियां मौजूद हैं.
इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर व जाने-माने इतिहासकार योगेश्वर तिवारी का दावा है कि औरंगजेब की सेना ने भगवान विश्वेश्वर महादेव के मंदिर को 1669 में एक फरमान के तहत उजाड़ दिया था. वहां पर तोड़फोड़ की गई और ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करा दिया गया. यह फरमान आज भी कोलकाता में मौजूद है. इसका उल्लेख मासिर ए आलमगिरी पुस्तक में भी किया गया है. उनके मुताबिक, औरंगजेब ने सिर्फ काशी में विश्वेश्वर मंदिर को नहीं तोड़ा बल्कि मथुरा और ओरछा में भी मंदिरों को तोड़ा और इसके साथ देश में कई मंदिर तोड़े गए.
औरंगजेब का ये था मकसद इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी कहते हैं कि औरंगजेब मूर्तियों का भंजक था. उसका उद्देश्य दारुल हरम को दारुल इस्लाम में परिवर्तित करना था. औरंगजेब पूरे देश में इस्लाम का साम्राज्य कायम करना चाहता था. इसी उद्देश्य हिंदुओं के धार्मिक स्थलों पर आक्रमण कर रहा था. तिवारी के मुताबिक, यह वही स्थान है जहां पर भगवान शिव ने मां गौरी को ज्ञान की दीक्षा दी थी, इसीलिए यहां पर ज्ञानवापी कुंआ है, जिसे बाद में ज्ञानवापी मस्जिद का रूप दे दिया गया.
योगेश्वर तिवारी ने किया ये दावाइतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि जाने-माने इतिहासकार डॉक्टर मोतीचंद ने अपनी किताब ‘काशी का इतिहास’ में विश्वेश्वर महादेव मंदिर का विस्तृत जिक्र किया है. उन्होंने इस किताब में औरंगजेब के कालखंड में उस दौरान तोड़े गए हिंदू धार्मिक स्थलों का भी जिक्र किया है. वाराणसी में किस तरह का समाज होता था, उसके बारे में भी जिक्र किया गया है. तिवारी के मुताबिक, उस कालखंड में भारत की यात्रा पर आए चीनी यात्री फाह्यान ने भी अपनी यात्रा में महादेव विश्वेश्वर का जिक्र किया है. इसके साथ ही दूसरे इतिहासकारों ने भी इसका जिक्र किया है. उन्होंने कहा कि इतिहास साक्ष्यों पर चलता है, इसलिए इस बात को अदालत में भी साबित करने के लिए हिंदुओं के पास तमाम दूसरे साक्ष्य मौजूद हैं. फिर जरूरत पड़ने पर अदालत के समक्ष पेश किया जा सकता है.
इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने कहा है कि वाराणसी जिला कोर्ट के हालिया आदेश के बाद जिस तरह से वहां पर सर्वे कराया गया उसके बाद जिस तरह के प्रतीक चिन्ह ज्ञानवापी मस्जिद में मिले हैं. वह प्रमाणित करते हैं कि वहां पर कभी मंदिर ही हुआ करता था. प्रोफेसर योगेश तिवारी के मुताबिक, 16वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी, 18वीं शताब्दी, 19वीं शताब्दी और अब 21वीं शताब्दी में लगातार ज्ञानवापी मस्जिद को वापस हिंदुओं को देने की मांग उठती रही है. यही वजह है कि एक बार फिर से यह मांग उठी है. उन्होंने यह भी कहा है कि इस मामले में धर्म ग्रंथों और ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर सच का पता लगाया जा सकता है. इसके साथ ही साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग जो कि ऐसे ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों की जांच पड़ताल किए अधिकृत है,उसके पास भी कार्बन डेटिंग और दूसरी ऐसी तमाम विधियां हैं, जिनके जरिए को इस बात का पता लगाया जा सकता है. आखिर वहां पर पहले क्या स्थिति रही होगी, इसलिए इस मामले में किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि विवादित स्थल पर स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का मंदिर ही मौजूद था.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: Allahabad Central University, Aurangzeb, Gyanvapi Masjid Controversy, Gyanvapi Mosque, Varanasi newsFIRST PUBLISHED : May 21, 2022, 23:26 IST
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