Uttar Pradesh

93 या 95 नहीं, आखिर हिंदू धर्म में चिता की राख पर 94 ही क्यों लिखा जाता है? जानिए इसके पीछे का रहस्य

Last Updated:November 18, 2025, 15:18 ISTHindu Funeral Traditions: हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़ी कई प्राचीन परंपराएं हैं. उन्हीं में से एक परंपरा मरणोपरांत राख पर 94 लिखने की भी है. काशी से लेकर हरिद्वार तक आज भी यह रिवाज निभाया जाता है. इस खबर में जानिए आखिर क्या है यह परंपरा और हिंदू धर्म में इसका क्या महत्व है.सहारनपुर: इंसान का जन्म और मृत्यु, जीवन की दो सबसे महत्वपूर्ण अवस्थाएं मानी जाती हैं. जब व्यक्ति इस दुनिया से विदा लेता है, तो अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग तरीकों से अंतिम संस्कार किया जाता है. हिंदू धर्म में भी विभिन्न क्षेत्रों में मरणोपरांत कई परंपराएं आज भी प्रचलित हैं. कुछ जगहों पर अस्थियों को सीधे विसर्जित किया जाता है, वहीं कई क्षेत्रों में दाह संस्कार के बाद राख पर 94 लिखने की प्रथा भी निभाई जाती है. यह परंपरा आमतौर पर काशी में देखी जाती है, लेकिन सहारनपुर और हरिद्वार क्षेत्र में भी यह रिवाज लंबे समय से चलता आ रहा है.

सहारनपुर जनपद उत्तर प्रदेश का अंतिम जिला माना जाता है, जो धार्मिक नगरी हरिद्वार से सटा हुआ है. कभी हरिद्वार भी सहारनपुर का ही हिस्सा हुआ करता था, बाद में इसे अलग किया गया. लेकिन दोनों क्षेत्रों की धार्मिक परंपराएं आज भी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं. सहारनपुर में जब किसी व्यक्ति का निधन होता है, तो उसके पिंडदान और अस्थि विसर्जन के लिए परिवारजन पारंपरिक रूप से हरिद्वार ही जाते हैं. इसी दौरान दाह संस्कार के बाद राख पर 94 लिखने की परंपरा निभाई जाती है, जिसका अपना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है.

क्यों लिखा जाता हैं मरणोपरांत राख पर 94परंपरा के अनुसार, ऐसा मना जाता है कि भगवान ने कुल 100 कर्म बनाए हैं. इनमें से 94 कर्म मनुष्य को दिए गए हैं, जिन्हें वह अपने जीवन में अपनी इच्छा और कर्मों के आधार पर करता है. बाकी 6 कर्म भगवान के ही अधिकार में रहते हैं. कहा जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा के स्वर्ग और नर्क का निर्णय इन्हीं कर्मों के आधार पर होता है.

कहा जाता है कि दाह संस्कार के बाद राख पर 94 लिखकर यह दर्शाया जाता है कि मनुष्य अपने जीवन के 94 कर्म पूरे कर चुका है और अब वह स्वयं को भगवान को समर्पित कर रहा है. यह संकेत आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना का प्रतीक माना जाता है.

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 93 या 95 नहीं, बल्कि 94 ही इसलिए लिखा जाता है क्योंकि भगवान ने 100 में से 94 कर्म मनुष्य को दिए हैं. ये वे कर्म हैं जिन्हें व्यक्ति अपने पूरे जीवन में अपने निर्णयों के आधार पर करता है. जबकि 6 कर्म — धन, लाभ, हानि, यश, कीर्ति और अपयश — भगवान के ही पास माने जाते हैं. इन्हीं छह कर्मों के आधार पर परमात्मा मनुष्य के पूरे जीवन का फल तय करते हैं.

आचार्य के अनुसार, राख पर 94 लिखना एक मौन संदेश होता है कि व्यक्ति अपने सारे सांसारिक कर्मों को पीछे छोड़कर अब प्रभु चरणों में समर्पित हो चुका है. इसी भाव से यह परंपरा आज भी निभाई जाती है.Seema Nathसीमा नाथ पांच साल से मीडिया के क्षेत्र में काम कर रही हैं. मैने शाह टाइम्स, उत्तरांचल दीप, न्यूज अपडेट भारत के साथ ही लोकल 18 ( नेटवर्क 18) में काम किया है. वर्तमान में मैं News 18 (नेटवर्क 18) के साथ जुड़ी हूं…और पढ़ेंसीमा नाथ पांच साल से मीडिया के क्षेत्र में काम कर रही हैं. मैने शाह टाइम्स, उत्तरांचल दीप, न्यूज अपडेट भारत के साथ ही लोकल 18 ( नेटवर्क 18) में काम किया है. वर्तमान में मैं News 18 (नेटवर्क 18) के साथ जुड़ी हूं… और पढ़ेंन्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।Location :Saharanpur,Uttar PradeshFirst Published :November 18, 2025, 15:18 ISThomedharm93 या 95 नहीं, आखिर हिंदू धर्म में चिता की राख पर 94 ही क्यों लिखा जाता है?Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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