उत्तर प्रदेश के चार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण को लेकर जारी शासनादेशों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने रद्द कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती और इस सीमा का उल्लंघन असंवैधानिक है।
कोर्ट ने अंबेडकरनगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर स्थित मेडिकल कॉलेजों में लागू आरक्षण व्यवस्था को खारिज करते हुए नए सिरे से सीटें भरने का आदेश दिया है। यह आदेश जस्टिस पंकज भाटिया की सिंगल बेंच ने साबरा अहमद की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
हाईकोर्ट ने पाया कि इन कॉलेजों में शासनादेशों के माध्यम से आरक्षित वर्गों के लिए 79% से अधिक सीटें सुरक्षित कर दी गई थीं, जो संविधान द्वारा निर्धारित 50% सीमा से कहीं अधिक है। राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि इन कॉलेजों में दाखिले पहले ही हो चुके हैं, लेकिन कोर्ट इस पर संतुष्ट नहीं हुआ।
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि आरक्षण अधिनियम 2006 के अनुसार ही नई काउंसलिंग की जाए और प्रक्रिया दोबारा शुरू की जाए। यह आदेश नीट 2025 के एक अभ्यर्थी साबारा अहमद की याचिका पर आया, जिसे 523 अंक और ऑल इंडिया रैंक 29,061 प्राप्त हुई थी। याचिका में कहा गया कि वर्ष 2010 से 2015 के बीच जारी किए गए शासनादेशों के ज़रिए आरक्षण की सीमा लगातार बढ़ाई गई, जो अब असंवैधानिक स्तर तक पहुंच गई है।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति जताते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया कि चारों मेडिकल कॉलेजों में दाखिला प्रक्रिया नए आरक्षण मानदंडों के तहत दोबारा शुरू की जाए। हालांकि, कोर्ट के इस आदेश पर विभाग ने कहा कि इस फैसले से पहले चरण की पूरी काउंसलिंग प्रभावित होगा।
इस आदेश से चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में हलचल मच गई है। उत्तर प्रदेश के 10 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश ले चुके हैं। लेकिन अब कोर्ट के इस आदेश के बाद इन छात्रों के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है। अगर इन छात्रों को राहत नहीं मिली तो इनकी काउंसलिंग फिर से करनी पड़ सकती है।