मटर की खेती के लिए सही समय और तरीके जानें
मटर की खेती ठंडी और नमी वाली जलवायु में की जाती है, और इसकी बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर के मध्य से नवंबर के अंत तक माना जाता है। इस अवधि में बोई गई फसल में फूल और फलियां अच्छी बनती हैं और उत्पादन भी अधिक मिलता है। यदि देर से यानी दिसंबर में बुवाई की जाती है, तो तापमान बढ़ने के कारण पौधे पर विपरीत असर पड़ता है और उपज घट जाती है।
एक्सपर्ट के अनुसार, मटर की फसल लगभग 75 से 100 दिन में तैयार हो जाती है, और एक हेक्टेयर में 60 से 80 क्विंटल हरी फलियां या 15 से 20 क्विंटल सूखी मटर का उत्पादन होता है।
रायबरेली जिले के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के सहायक विकास अधिकारी कृषि दिलीप कुमार सोनी ने बताया कि रबी के सीजन में जो भी किसान मटर की खेती करना चाहते हैं, वह अब तैयारी शुरू कर दें। क्योंकि मटर की खेती के लिए अक्टूबर और नवंबर का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है।
मटर की खेती के लिए सही समय
मटर की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर के मध्य से नवंबर के आखिरी सप्ताह तक माना जाता है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में किसान इसे आमतौर पर 15 अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच बोते हैं। इस समय पर बुवाई करने से पौधों को ठंडी जलवायु मिलती है, जिससे फूल और फलियां ज्यादा बनती हैं और दाने भरे हुए आते हैं।
मिट्टी की तैयारी
मटर की खेती के लिए दोमट या हल्की बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। खेत का पीएच 6 से 7 के बीच होना चाहिए। बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरा बना लें और खरपतवार हटा दें। गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट (8-10 टन प्रति एकड़) डालने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है।
बुवाई और बीज की मात्रा
मटर की बुवाई लाइन से करनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सेंटीमीटर रखें। प्रति एकड़ 35-40 किलो बीज पर्याप्त रहता है। बीज को बोने से पहले राइजोबियम कल्चर और ट्राइकोडर्मा से उपचारित करना चाहिए, इससे फसल में रोग कम लगते हैं और जड़ों में गांठ बनती है जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करती है।
खाद और सिंचाई प्रबंधन
खेत की जुताई के समय डीएपी (40 किलो प्रति एकड़), पोटाश (10-15 किलो) और जिंक सल्फेट (5 किलो) डालना फायदेमंद होता है। फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 15-20 दिन बाद करें। इसके बाद फूल आने और फलियां बनने के समय सिंचाई जरूर करें। पानी का ज्यादा भराव न होने दें क्योंकि मटर पानी जमने से सड़ सकती है।
फसल की देखभाल और कटाई
फूल आने पर कीट और रोग नियंत्रण पर ध्यान दें। फली भरने के समय तना छेदक और पत्ती खाने वाले कीड़ों से बचाव के लिए जैविक कीटनाशक या सिफारिश अनुसार दवा का छिड़काव करें। मटर की कटाई तब करें जब फलियां हरी-भरी और दाने अच्छी तरह भर चुके हों। समय पर कटाई से दाने मीठे और मुलायम रहते हैं, जिससे बाजार में अच्छी कीमत मिलती है।