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6 month premature baby defeated brain bleed and rare blood disorder | नहीं मानी हार! 6 महीने के प्रीमैच्योर बच्चे ने ब्रेन हैमरेज और खून की दुर्लभ बीमारी को दी मात, मेडिकल वर्ल्ड में बना मिसाल



जिस उम्र में बच्चे मां की कोख में विकसित हो रहे होते हैं, उस समय यह नन्हा योद्धा जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा था. मात्र 27 हफ्ते में जन्मे इस प्रीमैच्योर बच्चे ने जन्म लेते ही न केवल ब्रेन हैमरेज जैसी जानलेवा स्थिति का सामना किया, बल्कि खून की एक दुर्लभ बीमारी से भी जूझा. डॉक्टरों को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि इतना छोटा बच्चा इतने बड़े मेडिकल कॉम्प्लिकेशन से उबर पाएगा. लेकिन जज्बा, मेडिकल साइंस और समय पर इलाज ने इस बच्चे को मौत के मुंह से खींच लाया. आज यह बच्चा न केवल स्वस्थ है, बल्कि मेडिकल वर्ल्ड के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल भी बन चुका है.
फरीदाबाद के अमृता अस्पताल में डॉक्टरों ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जिसे चिकित्सा इतिहास में मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है. मात्र 27 हफ्ते और 4 दिन में जन्मे एक प्रीमैच्योर बच्चे ने न सिर्फ ब्रेन हैमरेज और फेफड़ों व आंतों में ब्लीडिंग जैसी गंभीर दिक्कतों को मात दी, बल्कि इम्यून हाइड्रॉप्स फीटालिस जैसी दुर्लभ और जानलेवा स्थिति से भी जंग जीत ली. यह विश्व का पहला मामला है जब इस स्थिति से ग्रसित कोई शिशु 28 हफ्ते से कम उम्र में जीवित बच पाया हो.
कैसे होती है ये समस्या?इस दुर्लभ बीमारी में मां की इम्यून सिस्टम बच्चे के रेड ब्लड सेल्स पर हमला कर देती है, जिससे बच्चे में गंभीर एनीमिया और पूरे शरीर में तरल जमा हो जाता है. बच्चे की मां, किरण यादव (43), पहले ही एक ब्रेन ट्यूमर से लड़ चुकी थीं और IVF से गर्भवती हुई थीं. इससे पहले वह तीन बच्चों को खो चुकी थीं और 15 साल से मां बनने की कोशिश कर रही थीं.
प्रेनेंसी के दौरान जुड़वां बच्चों में से एक की 10 दिन पहले गर्भ में ही मृत्यु हो गई थी. हालात इतने नाजुक थे कि डॉक्टरों को तुरंत डिलीवरी करनी पड़ी. जन्म के समय बच्चा ज्यादा सूजन से ग्रसित था, हीमोग्लोबिन का लेवल जीवन के लिए आवश्यक लेवल से भी नीचे था, और उसे हाई फ्रीक्वेंसी वेंटिलेशन, IVIG थेरेपी और दो बार डबल वॉल्यूम एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन देना पड़ा.
एक्सपर्ट का बयानडॉ. हेमंत शर्मा, वरिष्ठ नवजात विशेषज्ञ, ने कहा कि मेरे करियर का यह सबसे चुनौतीपूर्ण और इमोशनल मामला रहा. बच्चे ने हर मुश्किल से लड़ते हुए जीवित रहने की एक मिसाल कायम की है. इस अनोखे केस की सफलता में छह विशेषज्ञ डॉक्टरों और 20 से अधिक नर्सों की टीम ने अहम भूमिका निभाई. विशेषज्ञों की निगरानी में बच्चे की सेहत और विकास की हर महीने समीक्षा की जा रही है.



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