Uttar Pradesh

पीलीभीत के 5 प्रमुख मंदिर: ये हैं पीलीभीत के 5 प्रमुख मंदिर, सैकड़ों वर्ष पुराना है इतिहास; जानें मान्यता

उत्तर प्रदेश का पीलीभीत जिला ईको टूरिज्म के लिए देश ही नहीं पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध है. लेकिन पीलीभीत न केवल ईको पर्यटन बल्कि आध्यात्मिक पर्यटन के लिहाज से भी काफी अधिक महत्वपूर्ण है. पीलीभीत के कई ऐसे मंदिर हैं जिनका सैकड़ों वर्ष पुराना इतिहास है. इनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में जानकारी नीचे दी गई है:

पीलीभीत के खकरा नदी के किनारे मोहल्ला डालचंद में बने गौरीशंकर का मंदिर बहुत प्राचीन है. इस मंदिर में लगा शिवलिंग अपने आप में बहुत अनूठा है. इसलिए इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं के मन में विशेष आस्था है. सावन में मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है. इस मंदिर का इतिहास 500 साल से भी प्राचीन बताया जाता है. यह मंदिर पीलीभीत के चौक बाजार में स्थित है और राधारमण मन्दिर काफी प्राचीन है. इस मंदिर का निर्माण पीलीभीत के तत्कालीन राजा लालता प्रसाद और हरि प्रसाद ने बनाया था. ऐसा माना जाता है कि राजाओं ने कुछ मनोकामना मांगी थी और राजाओं की आस्था राधारमण में बहुत अधिक थी. मनोकामना के पूर्ण होने के बाद उन्होंने इस मन्दिर की स्थापना की थी. मन्दिर में लगे शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण सम्वत 1853 ( सन 1796 ) में हुआ था.

पीलीभीत टाइगर रिजर्व के मुस्तफाबाद गेट से कुछ दूरी पर ही लखनऊ की लाइफ लाइन कहीं जाने वाली गोमती नदी का उद्गम स्थल स्थित है. इसे गोमात ताल के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह जगह कई ऋषि मुनियों की तपोभूमि भी मानी गई है. मान्यता है कि पीलीभीत में एक तपस्वी बाबा दुर्गानाथ हुआ करते थे जिनकी तपस्या से मां गोमती का उद्गम हुआ था. इकोत्तरनाथ शिव मंदिर पीलीभीत जिले की पूरनपुर तहसील में पड़ता है. यहां जाने के लिए पुवायां रोड से होते हुए द्वयूरिया रेंज के जंगल में गोमती नदी के तट पर पहुंचना रहता है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि रोजाना इस पौराणिक शिवलिंग का सबसे पहले जलाभिषेक देवराज इंद्र स्वयं आ कर करते हैं. बताया जाता है कि कपाट बंद होने के बाद यहां कोई नहीं रुकता. जब सुबह कपाट खोला जाता है, तो शिवलिंग पर पुष्प, जल इत्यादि चढ़े मिलते हैं. पीलीभीत शहर में स्थित माता यशवंतरी देवी मंदिर न केवल पीलीभीत बल्कि आसपास के तमाम इलाकों के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र है. नवरात्रि के दौरान दूर-दराज से हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं. मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर 800 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है. हालांकि उत्तर प्रदेश गजेटियर के अनुसार इसका निर्माण 400 साल पहले हुआ था.

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