2005 के बाद मऊ में फिर खूनी संघर्ष की आहट… जानें मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की अदावत की कहानी

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मऊ : दिवंगत माफिया मुख्तार अंसारी के दुश्मनों की अगर बात की जाए तो इस लिस्ट में सबसे बड़ा नाम है बृजेश सिंह. एक समय पूर्वांचल में दो बड़े माफिया मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की दुश्मनी की कहानी भी लगभग 3 दशक से ज्यादा पुरानी है लेकिन समय-समय पर इस दुश्मनी की यादें ताजा होती रहती हैं. मऊ उपचुनाव की चर्चा के बीच माफिया मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की दुश्मनी फिर चर्चा में है. यह दुश्मनी सिर्फ आपसी रंजिश नहीं, बल्कि अपराध, राजनीति और वर्चस्व की जटिल और खून-खराबे से भरी कहानी है. इस दुश्मनी ने पूर्वांचल की राजनीति को दशकों तक प्रभावित किया और पूर्वांचल को “माफिया राजनीति” का पर्याय बना दिया.

बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच की दुश्मनी उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित आपराधिक राजनीतिक टकरावों में से एक है. इसकी शुरुआत 1991-1992 के आसपास हुई थी. यह लड़ाई थी पूर्वांचल के वर्चस्व की. एक ओर बाहुबली बृजेश सिंह, जिनकी पहचान “ठेकेदार माफिया” के रूप में थी, और दूसरी ओर माफिया डॉन मुख्तार अंसारी, जो अपराध के साथ-साथ मुस्लिम वोट बैंक और स्थानीय लोकप्रियता के दम पर तेजी से उभर रहा था. पूर्वांचल के चंदौली, मऊ, गाजीपुर, वाराणसी, बलिया और जौनपुर जैसे जिलों में सरकारी ठेकों, सड़कों, पुलों और निर्माण कार्यों पर कब्जे के लिए दोनों गुट आमने-सामने थे.

कैसे कट्टर दुश्मन बने पूर्वांचल के 2 माफिया?
गाजीपुर के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद के एक प्रतिष्ठित मुस्लिम परिवार में जन्मे मुख्तार अंसारी की अपराध की दुनिया में एंट्री 1988 में हुई, जब मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर सच्चिदानंद राय की हत्या के मामले में उनका नाम सामने आया. उसी समय बनारस में त्रिभुवन सिंह के कांस्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की हत्या हुई, जिसमें भी मुख्तार का नाम आया. गौरतलब है कि त्रिभुवन सिंह, माफिया डॉन बृजेश सिंह का सबसे करीबी सहयोगी था. इसके साथ ही बृजेश सिंह के पिता की हत्या में मुख्तार के गुरु साधु सिंह और मकनू सिंह का नाम सामने आया था. यहीं से यह दुश्मनी निजी, आपराधिक और राजनीतिक तीनों रूपों में बदलने लगी.

खूनी टकराव और भूमिगत बृजेश सिंह15 जुलाई 2001 को गाजीपुर के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद से मऊ जाते समय बृजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी पर पहला हमला करवाया था. इस हमले में मुख्तार अंसारी की जान बाल-बाल बच गई लेकिन उसके दो सहयोगी मारे गए. ये घटना उसरी चट्टी कांड के नाम फेमस है. इसके बाद से मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की दुश्मनी ने पूर्वांचल में खूनी इतिहास की नई पटकथा लिखी गई. इस घटना के बाद बृजेश सिंह लंबे समय तक भूमिगत हो गया. बृजेश सिंह की नजदीकी बीजेपी और भूमिहार ब्राह्मण नेताओं से थी वहीं मुख्तार अंसारी ने पहले बसपा और बाद में सपा का समर्थन हासिल किया. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के करीबी लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया.

काट ली पंडित की चुटिया
साल 2002 में कृष्णानंद राय ने मुख्तार अंसारी के भाई अफजल अंसारी को चुनाव में हरा दिया. मुख्तार अंसारी को शक था कि इस चुनाव में पर्दे के पीछे बृजेश सिंह की बड़ी भूमिका थी. अपना राजनैतिक कद घटता देख मुख्तार अंसारी ने ऐसा बदला लिया जो यूपी की राजनीति और गैंगवार में पूरी तरह से अलग था. 29 नवंबर 2005 को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की गाजीपुर में AK-47 से गोली मारकर हत्या कर दी गई. यह हमला इतना सुनियोजित और क्रूर था कि इसे गैंगवार की सबसे बड़ी घटनाओं में गिना गया. इस दौरान 450 राउंड से अधिक गोलियां चली थी. अकेले कृष्णानंद राय को 76 गोलियां मारी गई थी. घटना के बाद मुख्तार अंसारी का एक आडियो वॉयरल हुआ थी. जिसमें वह अमेठी के एक विधायक को बता रहा था कि कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुन्ना ने उसकी चुटिया काट ली.

पूर्वांचल बना गैंगवार का गढ़कृष्णानंद राय, बृजेश सिंह के बेहद करीबी माने जाते थे. इस हत्या ने दुश्मनी को खुली जंग में बदल दिया. इस दुश्मनी ने पूर्वांचल को गैंगवार का गढ़ बना दिया. पुलिस, प्रशासन, राजनीति, ठेकेदारी, शिक्षा, चिकित्सा हर क्षेत्र में दोनों गुटों की समानांतर सत्ता चलने लगी. मुख्तार अंसारी ने जेल से रहते हुए भी राजनीति में सक्रियता बनाए रखी. उन्होंने 2007, 2012, 2017 और 2022 में खुद या अपने बेटे को मऊ सदर से विधानसभा चुनाव लड़वाया और हर बार जीत दर्ज की.

मुख्तार अंसारी के सीट पर बृजेश सिंह की नजरमुख्तार अंसारी के सीट पर बृजेश सिंह की नजर मुख्तार अंसारी के बड़े बेटे अब्बास अंसारी को हिट स्पीच मामले में 2 साल की सजा हो गई है. अब मऊ के सदर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना तय माना जा रहा और अब बृजेश सिंह की इस सीट पर नजर है. यदि मऊ सदर विधानसभा पर उपचुनाव होता है तो यह कयास लगाया जा रहा है कि यहां से अंसारी परिवार का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है. वहीं इस सीट पर कब्जा करने के लिए बृजेश सिंह भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने यह संकेत दे दिया है कि यदि उपचुनाव में यह सीट उन्हें मिलती है तो बृजेश सिंह यहां से चुनाव लड़ सकते हैं.

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