जौनपुर: जिले के विशुनपुर गांव के रहने वाले अनिल यादव ने आम की खेती को एक नया आयाम दे दिया है. पेशे से सरकारी शिक्षक अनिल यादव ने पारंपरिक कृषि पद्धतियों को पीछे छोड़ते हुए जैविक खेती और आधुनिक तकनीक से खेती शुरू किया. जहां ‘मियांजॉकी’ आम की खेती कर कमाल कर दिया. ‘मियाजॉकी’ आम की खेती का विशेष बात यह है कि यह बाजार में 2.5 लाख रुपए प्रति किलो तक बिक रहा है, जो न सिर्फ किसानों के लिए बल्कि कृषि क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों के लिए भी प्रेरणा का विषय बन गया है.
आर्गेनिक तरीके से की आम की खेती
अनिल यादव ने खेती को सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक मिशन की तरह अपनाया है. उन्होंने आम की इसमें न केवल वर्षों की मेहनत लगाई, बल्कि खेती के हर पहलू में पर्यावरण और गुणवत्ता को प्राथमिकता दी. उन्होंने रसायनमुक्त यानी पूरी तरह आर्गेनिक खेती को अपनाया, जिससे फल का स्वाद, सुगंध और पोषण स्तर असाधारण बना.
इस फसल के लिए मिलेगा 90% सब्सिडी
इस सफलता में तकनीक की भूमिका भी अहम रही. अनिल यादव ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत ‘ड्रिप इरिगेशन सिस्टम’ को अपनाया. जिला उद्यान अधिकारी सीमा सिंह राणा के अनुसार, इस प्रणाली से जल की काफी बचत होती है और पौधों को नियंत्रित मात्रा में जल दिया जा सकता है. इससे न केवल फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है. बल्कि उपज में भी उल्लेखनीय वृद्धि होती है. खास बात यह है कि इस प्रणाली पर सरकार ने उन्हें 90% तक की सब्सिडी भी प्रदान की, जिससे आर्थिक भार काफी कम हुआ है.
ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाने से अनिल यादव की खेती में लागत में कटौती हुई और उन्हें ज्यादा लाभ प्राप्त हुआ. साथ ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी उनका यह प्रयास सराहनीय रहा. उन्होंने दिखा दिया कि यदि किसान चाहें तो परंपरागत खेती को आधुनिक तरीके से जोड़कर नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं.
विदेश तक है इस आम की मांग
‘मियांजॉकी’ आम की मांग अब देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ रही है. इसकी अनोखी मिठास और उच्च गुणवत्ता ने इसे आम बाजार से अलग पहचान दिलाई है. अनिल यादव की यह सफलता न केवल उनकी मेहनत का फल है, बल्कि यह साबित करती है कि सही योजना तकनीक और सोच के साथ भारत का किसान वैश्विक स्तर पर पहचान बना सकता है.
अनिल यादव आज कई युवाओं और किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुके हैं. उन्होंने यह दिखा दिया कि शिक्षा, तकनीक और जैविक सोच के साथ यदि खेती की जाए तो वह न केवल लाभदायक होती है, बल्कि समाज और प्रकृति दोनों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है.