Uttar Pradesh

1883 में रखी गई थी नींव, अब बना एशिया का बौद्धिक धरोहर स्थल, शिब्ली अकादमी की कहानी अपने आप में इतिहास

Last Updated:August 12, 2025, 17:26 ISTUP News: इस लाइब्रेरी की खासियत है कि इसमें आज तकरीबन डेढ़ लाख से अधिक कई भाषाओं में लिखित किताबें मौजूद हैं. इसके अलावा इस लाइब्रेरी में आज भी फारसी, अरबी और उर्दू भाषा में हाथों से लिखी हुई तकरीबन 700 से अधिक…और पढ़ेंआजमगढ़: जिले का इतिहास ऋषियों से जुड़ा हुआ है. यहां की धरती पौराणिक इतिहास की भी साक्षी है. यह जिला तमसा नदी के पावन अविरल धारा के किनारे बसा शहर है. यह शहर आज भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की धरोहर है. बात चाहे आजादी की पहली क्रांति की हो या फिर अंग्रेजों से लोहा लेते हुए 81 दिनों तक सबसे पहले आजादी का ताज पहनने वाले पहले शहर की. इसी तरह आजमगढ़ शिक्षा के क्षेत्र में भी पूरे प्रदेश में अपनी छाप छोड़ता है. आजमगढ़ में शिब्ली एकेडमी शिक्षा की एक ऐसी ऐतिहासिक धरती है जहां मौजूद लाइब्रेरी अरबी भाषा की एशिया की सबसे बड़ी कुतुबखाना (पुस्तकालय) में से एक मानी जाती है.

700 से अधिक पांडुलिपियां इस लाइब्रेरी की खासियत है कि इसमें आज तकरीबन डेढ़ लाख से अधिक कई भाषाओं में लिखित किताबें मौजूद हैं, इसके अलावा इस लाइब्रेरी में आज भी फारसी, अरबी और उर्दू भाषा में हाथों से लिखी हुई तकरीबन 700 से अधिक पांडुलिपियां मौजूद हैं. सन् 1883 में अल्लामा शिब्ली नोमानी के द्वारा इस शिब्ली अकादमी की नींव रखी गई थी, तब से लेकर आज तक शिब्ली एकेडमी शिक्षा के क्षेत्र में अपना परचम बुलंद किए हुए हैं.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को जो रुतबा हासिल है, वैसा ही प्रभाव पूरब में आजमगढ़ के शिब्ली एकेडमी का है. शिब्ली अकादमी में बतौर स्कॉलर मौजूद उमैर बताते हैं कि अल्लामा शिब्ली नोमानी का सपना था कि एक ऐसी जगह बनाई जाए जहां पर स्कॉलर्स, रिसचर्स के लिए किताबें मौजूद हो. मगर, 18 नवंबर 1914 में शिब्ली नॉमिनी का निधन हो गया.

लेखकों का घरउनके इस सपने को पूरा करते हुए उसी दिन उनके शिष्यों के द्वारा दारुल मुसन्निफीन (लेखकों का घर) संस्था के तहत इस ऐतिहासिक कुतुबखाना की स्थापना की गई. शिब्ली अकादमी में मौजूद यह कुतुबखाना आज भी सिर्फ आजमगढ़ ही नहीं बल्कि देश विदेश के कई उर्दू ,फारसी और अरबी रिसचर्स के लिए बेहद महत्वपूर्ण केंद्र में से एक है. इस लाइब्रेरी में 700 हस्तलिखित पांडुलिपियां के साथ साथ कई बेश कीमती ऐतिहासिक किताबें भी मौजूद हैं. इनमें शाहजहां की बेटी बेगम जहांआरा की ‘मुनिस–उल–अरवाह’ और ‘सिर्रे अकबर’, साथ ही हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध उपनिषदों और महाभारत का फारसी अनुवाद भी उपलब्ध है. 15 एकड़ में फैले इस कॉलेज में उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी और हिन्दी में लिखी गई 1.5 लाख से अधिक पुस्तकें संग्रहीत हैं.Location :Azamgarh,Uttar PradeshFirst Published :August 12, 2025, 17:26 ISThomeuttar-pradesh1883 में रखी गई थी नींव, अब बना एशिया का बौद्धिक धरोहर स्थल

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