उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में एक ऐसा मोहल्ला है, जो अपनी पारंपरिक मिट्टी की कला के लिए जाना जाता है. यहां के परिवार पिछले 150 सालों से मिट्टी के दीये, बर्तन और सजावटी सामान बनाकर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं. आधुनिक समय में चुनौतियों के बावजूद उन्होंने अपनी पारंपरिक कला को नहीं छोड़ा.
सुल्तानपुर के पल्टन बाजार में स्थित ‘कुम्हारों का मोहल्ला’ एक ऐसा स्थान है, जहां करीब 300 साल पहले कुम्हारों का एक परिवार आकर बसा और अब यह पूरा इलाका ‘कुम्हारों का मोहल्ला’ के नाम से जाना जाता है. इस मोहल्ले की खासियत यह है कि यहां के लोग पिछले 150 वर्षों से अपने पारंपरिक व्यवसाय- मिट्टी के बर्तन और सजावटी सामान बनाने का काम कर रहे हैं. कई लोग पढ़े-लिखे और आधुनिक पेशों में जा सकते थे, लेकिन उन्होंने अपनी पारंपरिक कला को जिंदा रखा है.
मोहल्ले के निवासी साधु प्रजापति बताते हैं कि यह परंपरा करीब 150 साल पुरानी है. मिट्टी के उत्पाद बनाने का काम पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है और यहीं से इन परिवारों का आर्थिक आधार भी जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा, “हमारी पारंपरिक कला को जिंदा रखने के लिए हमने अपने पूर्वजों के तरीकों को अपनाया है और आज भी हम अपने पूर्वजों की तरह ही मिट्टी के उत्पाद बनाते हैं.”
मोहल्ले के आशीष कुमार ने बताया कि उन्हें किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है. न मिट्टी के लिए कोई पट्टा मिलता है और न कोई सहयोग. ऊपर से बाजार में मिट्टी के बर्तनों की मांग घटने के कारण उनका पारंपरिक व्यवसाय संकट में है. उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि उन्हें माटी कला योजना जैसी सरकारी योजनाओं में शामिल कर लाभ दिया जाए ताकि इस कला को बचाया जा सके.
आशीष कुमार ने कहा, “हमारी पारंपरिक कला को बचाने के लिए हमें सरकारी मदद की जरूरत है. हमें मिट्टी के लिए पट्टा मिलना चाहिए और हमें सहयोग की जरूरत है. अगर हमें सहयोग मिलेगा तो हम अपनी पारंपरिक कला को जिंदा रख सकते हैं और अपने परिवारों का भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं.”
सुल्तानपुर के कुम्हारों का मोहल्ला एक ऐसा स्थान है, जहां पारंपरिक कला को जिंदा रखने के लिए लोग अपने पूर्वजों के तरीकों को अपनाते हैं. यहां के लोग अपनी पारंपरिक कला को बचाने के लिए सरकारी मदद की मांग कर रहे हैं और आशा करते हैं कि उनकी मांग पूरी होगी और उनकी पारंपरिक कला को बचाया जाएगा.

